________________ जैन धर्म दिवाकर, जैनागम रत्नाकर, साहित्य रत्न जैन मुनि श्री 1008 उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज (पञ्जाबी) का सम्मति पत्र श्रीमान पं० श्यामलालजी बी. ए. प्रस्तुत ग्रन्थ को दिखाने यहाँ आये थे। मैंने तथा मेरे प्रिय शिष्य पं० हेमचन्द्रजी ने ग्रन्थ का भली भाँति पर्यवेक्षण किया। यह ग्रन्थ अतीव सुन्दर पद्धति से तैयार किया है / आगमों से तथा अन्य ग्रन्थों से बहुत ही सरस एवं प्रभावशाली बोलों का मंग्रह हृदय में आनन्द पैदा करता है / साधारण जिज्ञासु जनता को इस ग्रन्थ से बहुत अच्छा ज्ञान का लाभ होगा। प्रत्येक जैन विद्यालय में यह प्रन्थ पाठ्य-पुस्तक के रूप में रखने योग्य है / इससे जैन दर्शन सम्बन्धी अधिकांश ज्ञातव्य बातों का सहज ही में ज्ञान होजाता है। श्रीमान् सेठियाजी का तत्त्वज्ञान सम्बन्धी प्रेम प्रशंसनीय है। लक्ष्मी के द्वारा सरस्वती की उपासना करने में सेठियाजी सदा ही अप्रसर रहे हैं / प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन करके सेठजी ने इस दिशा में सराहनीय उद्योग किया है। ता० 27-6-1940. लुधियाना जैन मुनि उपाध्याय आत्माराम(पञ्जाबी) (पञ्जाब) लुधियाना।