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भावार्थ:- जो पुरुष ग्रह वास में निवास करता हुआ भी क्रमशः श्रावक धर्म को प्राप्त करके प्राणियों की हिंसा से निवृत्त होता है तथा सर्वत्र समभाव रखता है वह सुव्रत पुरुष देवताओं के लोक में जाता है ।
प्रस्तुत प्रन्थ से अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को इससे अत्यन्त लाभ हो सकता है। क्योंकि यह ग्रन्थ बड़ी उत्तम शैली से निर्माण किया गया है । अत: प्रत्येक मुमुक्षु आत्मा को इसका स्वाध्याय करना चाहिए जिस से वह क्रमशः निर्वाण पद की प्राप्ति कर सके ।
उपाध्याय जैन मुनि आत्माराम (पंजाबी)
लुधियाना
संवत् १६६७ पाढ
शुक्ला ४ चन्द्रवार