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श्री सठिया जैन ग्रन्थमाला (१) घनोदधि वलय (२) धनवान वलय (३) तनुवात वलय
(ठाणांग 3 सूत्र २२४) ११६-पृथ्वी के देशतः धृजन के तीन बोलः-तीन कारणों से
पृथ्वी का एक भाग विचलित हो जाता है। (१) ग्नप्रभा पृथ्वी के नोचे बादर पुगलों का स्वाभाविक जोर से अलग होना या दुमरे पुद्गलों का आकर जोर से टकराना पृथ्वी को देशतः विचलित कर देता है। (२) महाऋद्धिशाली यावत् महेश नाम वाला महोग्ग जाति का व्यन्तर दोन्मत्त होकर उछल कूद मचाता हुआ पृथ्वी को देशतः विचलित कर देता है। (३) नाग कुमार और सुपर्ण कुमार जाति के भवनपनि देवताओं के परस्पर मंग्राम होने पर पृथ्वी का एक देश विचलित हो जाता है।
(ठाणांग 3 उद्देशा ४ सूत्र १६८) ११७-मारी पृी धृजने के तीन बोलः-तीन कारणों से पूगे पृथ्वी विचलित होती है।
(१) रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे जब धनवाय क्षुब्ध हो जाती है तब उससे घनोदधि कम्पित होती है । और उससे सारी पृथ्वी विचलित हो जाती है। (२) महाऋद्धि सम्पन्न यावत् महाशक्तिशाली महेश नाम वाला देव तथारूप के श्रमण माहण को अपनी ऋद्धि, युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम दिखलाता हुआ मारी पृथ्वी को विचलित कर देता है।