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[ २ ] {प्रत्याख्यान आदि लेकर आप अपनी धार्मिक भावना को बनाये रखते हैं। व्यापार और धनोपार्जन में सनत प्रयत्न शील रहते हुए भी आप मदेव धर्मप्राण रहे हैं । इमी निए आप अनेक कठिन परीक्षाओं में धैर्य और साहस के साथ उत्तीर्ण हुए हैं।
__आपको विवाह के बाद ही १८ वर्ष की अवस्था में स्वावलम्बी जीवन का सहारा लेना पड़ा। बम्बई की एक प्रसिद्ध फर्म में, जिस के हिम्सदारों में आप के ज्येष्ठ भ्राता, श्री अगरचन्दजी संठिया भी थे,
आपने काम प्रारम्भ किया । इम फर्म से पृथक होते ही आप अपने स्वतन्त्र कारोबार मे प्रविष्ट हुए और आपने कलकत्ते में "दी सठिया कतार एण्ड कमीकल वक्स लिमिटेड' की स्थापना को एवं उसको बड़ी योग्यता से चलाया।
इम कारग्बाने की सफलता-म्वरूप आपने अपने कार्यालय की शाम्बार भारत के ग्रामद्ध-प्रसिद्ध नगगे जैसे कानपुर, दिल्ली,अमृतसर,अहमदाबाद बम्बई,मद्राम,कराची आदि स्थानों में खाली । आपने अपने कार्यालय की एक शाग्या जापान के प्रसिद्ध आमाका नगर में भी खोली। पीछ कतिपय सी घटनायं घटी जिनके कारग मसार के प्रति विराग हो जाने से आपने अपने व्यापार को बहुत मंनिन कर दिया और व्यापार-व्यवसाय के सघर्प से दर रहने लगे। परन्तु स्वभावतः आप एक परम कर्मनिष्ठ व्यक्ति है। इस कारगा आपने अपने जीवन के इन वर्षों को उन सठिया जैन पारमाथिक संस्थाओ' की उन्नति में लगाया, जिनकी स्थापना आपने मंचन १६७० में वाकानर में की । और जिसे आपके ज्येष्ठ भ्राता श्री अगरचन्द जी ने मिल कर मवन १६७८ में वर्तमान वृहत् रूप प्रदान किया। ___अपने कर्म-निष्ठ स्वभाव के कारण ही इसके पश्चात आप समाज. जानि और राज्य सेवा की ओर प्रवृत्त हुए । फलतः आप म्युनिसिपल कमिश्नर, म्युनिमिपैलिटी के वायम-प्रसीडेंट, आनरेरी मजिस्ट्रेट आदि कई मरकारी और अर्द्ध-मरकारपदों पर काम करते रहे। अभी प्राय