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श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह और बाद में सम्यक्त्व मोहनीय का क्षय करता है। जिम जीव ने आयु बांध रखी है । वह यदि इस श्रेणीको स्वीकार करता है तो अनन्तानुबन्धी का क्षय करके रुक जाता है । इसके बाद कभी मिथ्यात्व का उदय होने पर वह अनन्तानुबन्धी कषायको बांधता है । यदि मिथ्यात्व का भी क्षय कर चुका हो तो वह अनन्तानुबन्धी कषाय को नहीं बांधता । अनन्तानुबन्धी कषाय के क्षीण होने पर शुभ परिणाम से गिरे विना ही वह जीव मर जाय तो देवलोक में जाता है । इसी प्रकार दर्शन सप्तक (अनन्तानुबन्धी कपाय-चतुष्टय और दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों ) के क्षीण होने पर वह देवलोक में जाता है । यदि परिणाम गिर जाय और उसके बाद वह जीव काल करे तो परिणामानुमार शुभाशुभ गति में जाता है । जिम जीव ने आयु बाँध रखी है वह जीव अनन्तानुबन्धी का क्षय कर दर्शन मोहनीय की प्रकृतियों का भी क्षय कर दे तो इसके बाद वह अवश्य विश्राम लेता है। और जहां की आयु बांध रखी है वहां उत्पन्न होता है। जिस जीव ने आयु नहीं बांध रखी है वह इस श्रेणी को आरम्भ करे तो वह इस ममाप्त किये विना विश्राम नहीं लेता । दर्शन सप्तक को क्षय करने के बाद जीव नरक, तिर्यञ्च और देव आयु का क्षय करता है। इसके बाद अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषाय की आठों प्रकृतियों का एक साथ क्षय करना शुरु करता है । इन
आठों का पूरी तरह से क्षय करने नहीं पाता कि वह १६ प्रकृतियों का क्षय करता है । सोलह प्रकृतियों ये हैं: