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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrak
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सोनागिर अभिराम सुपर्वत है तहाँ । पच कोडि अर अरध मुक्ति पहुचे तहाँ । सोनागिर जमाल का लघुमति कहि बनाय । पढे गुन जो प्रेम सो तिनको पातक जाय ॥१७॥ इति सोनागिरि पूजा सपूर्णम् ।
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२००३. स्तवन जयमाल
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श्रीमन् श्रीजिनराजजन्मसमये इद्रादिहर्षायमान् । हस्तारूढविराजमानत्रिपुरीपुष्पालि दापयन् । इन्द्राणीपरिवारभृत्यसहिताः देवागनावृत्यवान, नानागीतविनोदम गलविधौ पूजार्थमादसौ ।।१।। जिनवर वरमातामाननीय समर्थो स जयति जिनराज लालचन्द्र
विनोदी। जिनवरपदपूज्य भावनेंद्रसुपूज्य सकलमलविमुक्त ते लभते
विमुक्तिम् । इति श्री स्तवन जयमाल सम्पूर्णम् ।
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२००४. स्वाध्याय पाठ
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शुद्धज्ञानप्रकाशाय लोकालोककभानवे । नम श्री वर्द्ध मानाय वर्द्धमान-जिनेशिने ॥१॥ उज्जोवण मुज्जोवण णिव्वाहण • • • • भणिया ॥३॥ इति स्वाध्याय पाठः । २००५. श्यामलयक्ष पूजा
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महिषासीनकराष्ठासित नख-शिखसुन्दररूप । स्थापित यक्ष अष्टमजिना श्यामलरूप अनूप ॥