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________________ ३०४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrak Closing सोनागिर अभिराम सुपर्वत है तहाँ । पच कोडि अर अरध मुक्ति पहुचे तहाँ । सोनागिर जमाल का लघुमति कहि बनाय । पढे गुन जो प्रेम सो तिनको पातक जाय ॥१७॥ इति सोनागिरि पूजा सपूर्णम् । Colophon . २००३. स्तवन जयमाल Opening : Closing ! श्रीमन् श्रीजिनराजजन्मसमये इद्रादिहर्षायमान् । हस्तारूढविराजमानत्रिपुरीपुष्पालि दापयन् । इन्द्राणीपरिवारभृत्यसहिताः देवागनावृत्यवान, नानागीतविनोदम गलविधौ पूजार्थमादसौ ।।१।। जिनवर वरमातामाननीय समर्थो स जयति जिनराज लालचन्द्र विनोदी। जिनवरपदपूज्य भावनेंद्रसुपूज्य सकलमलविमुक्त ते लभते विमुक्तिम् । इति श्री स्तवन जयमाल सम्पूर्णम् । Colophon: २००४. स्वाध्याय पाठ Opening : Closing । Colophon ! शुद्धज्ञानप्रकाशाय लोकालोककभानवे । नम श्री वर्द्ध मानाय वर्द्धमान-जिनेशिने ॥१॥ उज्जोवण मुज्जोवण णिव्वाहण • • • • भणिया ॥३॥ इति स्वाध्याय पाठः । २००५. श्यामलयक्ष पूजा Opening : महिषासीनकराष्ठासित नख-शिखसुन्दररूप । स्थापित यक्ष अष्टमजिना श्यामलरूप अनूप ॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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