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________________ २५८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon इति श्री सिद्धक्षेत्र पूजा सम्पूर्णम् । १८५१. निर्वाण क्षेत्र-पूजा Opening । Closing ! परम पूज चौवीस जहाँ जहाँ शिवथानक भयो । सिद्धभूम दशदीश मन वच तन पूजा करो ॥१॥ ए थल जावै पाप मिटावै गावै धावे भक्ति बढावै । जो पुजे सो शिव लहै ।। इति श्री सिद्धक्षेत्रकी पूजा सपूर्णम् । Colophon : १८५२. निर्वाणकल्याणक-पूजा Opening । Closing , Colophon: देखे, ऋ० १८४३ । देखे, ऋ० १८४१ । इति श्री निर्वाणकल्याणक जी की पूजा भाषा संस्कृत जयलाल सहित सम्पूर्णम् । १८५३ निर्वाण कल्याणक Opening कैवल दृष्टि चराचर देण्यौ जारिसो, भविजन प्रति उपदेश्यौ जिनवर तारिसो। भव भयभीत महाजन सरन जे आईया, रतनय सुम लछन शिव पय भाईया ||१|| रचि अगरचदन प्रमुख परिमल द्रव्य जिनजयकारियो। पद पतन अग्निकुमार मुकुटानल सुविधि सस्कारियो । निर्वान कल्याणक सुमहिमा सुनत सव सुख पाईये । भणि रूपचद सुरेव जिन्वर जगत मगल गाईये ।।६।। Closing
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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