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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabbrana & Hindi Manuscripts (Puja-Patha-Vidhāna) १८२६ नदीश्वर पूजा Opening : Closing : नदीश्वर पूरब दिसा तेरह श्री जिन गेह । आह्वानन तिनका करूं मन वच तन धरि नेह ॥१॥ मध्यलोक जिन भवन अकितम ताके पाठपढे मनलाई । जाके पुण्य तनी अति महिमा वरनन को करि सके वनाई ॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सपति वाढे अधिक सरस सुखदाई। इह भव जस परभव सुखदाई सुरनर पदलहि शिवपुर जाई ।। इति नदीश्वर पूजा सम्पूर्णम् । देखें, जै० सि० भ० ग्र० I, ऋ० ८७६ । Colophon Opening १८२७. नदीश्वर-पूजा मध्येमडपमालिखेद्वर्त्तरे नदीश्वर मण्डलम । वर्णे पञ्चभिरातत गुणगुरु शक्र सता सम्मत । तन्मध्ये चतुरानन जिनवर विम्वस्य सातास्पद । दियेऽग्टभिरिष्ट-सौख्य-जननं कुर्यात्तदर्चा तत ॥१॥ आयु " देवार्हतामहणा ॥११॥ इति श्री नदीश्वरपूजा समाप्त ॥ Closing Corophon : १८२८ नदीश्वरद्वीप-पूजा Opening . फरिपूरपरिपूरितभूरिनीर. धाराभिराभिराभित. श्रीतहारिणीभि नदीश्वरेष्टदिवसानि जिनाधिपाना आन दतः प्रतिकृति. परिपूजयामि ।। इयथुणि वि जिणेसरू महिपरमेसरू · सुक्ख सो पावई ।। इति श्री नदीश्वर द्वीप पूजा जयमाल समाप्त.। लेखकपाठकवाचमश्रोतृणा समस्तु शुभ भवतु । Closing Colophon:
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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