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२३६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhransa & Hindi Manuscripts
( Puja-Patha-Vidhana)
Closing .
पश्चात म्नीनि को पोडसामर्ण दीजै पार्छ घट दीजे पाडे छपैया पटत ईशान वेदी मध्य फलण थापी जइ तिसकी विधि आगे मिशेष है।
ति जलयत्रा विधि सपूर्णम् । सवोत्तर जलइ सविधि पूर्व नाइये । धीरस्तु । शुभमस्तु ।
Colophon :
१७८७. जिनयज्ञविधान
Opening
नमो अग्हताण, णमो मिद्वाण णमो आयरियाण, णमो उवझायाण णमो लोए नव्यमाहूण - " । ॐ ह्री सुन्दृष्ट्ये नम । ॐ ह्री सुधावलोकिने नमः । अनुपलब्ध।
Closing Colophon
१७८८ जिनवर विनती
Opening : Closing ।
श्रीपति जिनवर करुनायतन दुखहरन तुमारा ... ~ ...। हो दीनानाथ अनाथ हितजन दीन अनाथ पुकारी है। उदयागत कर्म विपाक हलाहल मोहि विथा विस्तारी है ।। विनती सम्पूर्णम् ।
Colophon
१७८६ जिनगुण-सम्पत्तिपूजा
Opening :
Closing :
वदे श्रीवृषभ देव वृपाक वृषदायकम् । षट्धर्मप्रणेतार कर्मभूभृतवज्रकम् ।। ये हस्तिनागे पुरिकौरवशो यश्चक्रिणायस्य स्तुति चकार । दानेश्रत्व जिनपुगवाय पुन स्तुव श्रेयगगाजिनानाम् ।। इति जिन गुण-साति-पूजा सम्पूर्णम् ।
Colophon.