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________________ २३४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : Colophon Opening . भक्तिजिनश्वरे यस्य .. तस्यैतत्सकल भवेत् ॥३५॥ इति नागेन्द्र स्तोत्रम् । १७७०. धरणेन्द्रपूजा धरणयक्षविलक्षणसहसै टितिधरोन्नतकच्छप्रवाहन । त्रिदशवदितपार्श्वजिनक्रम प्रणितमौलिमगीसदल श्रिय, ॥१॥ श्रीपार्श्वनाथपदपकजसेव्यमान पद्मावती मजतिवाड्मनवामभागम् । घोपरोपमर्गहनन निजमाणदक्ष त देवशुद्धिमतिग प्रमजामि नित्यम् इति पुष्पाजली धरणेन्द्र पूजा सम्पूर्णम् । Closing : Colophon: Opening । १७७१ गर्भ कल्याणक पणविवि एच परमगुरु गुरु जिनगमन, सकल मिद्ध दातार सुविधन विनासन । सारद अरु गुरु गौतम सुमति प्रकाशनं ।। मगल करि चौसघह पाप प्रनासन । भासियो सुफल सुणि चित्त दपति परम आनदित भएँ, छह मास परि नवमास वीते रयग दिन सुखसो गऐ। गर्भावतार महत महिमा सुनत सब सुख पाईये. भणि रूमचद सुदेव जिनवर जगत मगल गाईये |८| इति श्री गर्मकल्याणक भाषा समाप्तम् । Closing । Colophon. Opening : १७७२ गिरनारपूजा थी गिरनार सिपर परवत पर दक्षिणा दिम मे सोहै नेमनाथ जिन मुक्तधाम सव जन मोहै कोड बहत्तर सात सतक मुनि शिव पद पायो ता थल पूजन काज भव्य मब अति हरपागे तिम तीरथ गज सुक्षेत्र को आह्वान विधि ठानि कर पूजा विजोग मन यच तन मुश्रावक जन गुण जानकर ।।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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