________________
१८६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts
( Stotra)
Closing . Colophon:
. - तत प्रणिपत्य विसर्जयेत् । इति सव्या समाप्ता ।
१६१६. शातिजिन-आरती
Opening :
आरती कीजै स्वामी शात जिनद की। सब सुखदायक आनद कद की। विश्वसैन राजा जी के नदन । दरसन करत मिट भवफदन ॥ भैरी जे नर आरती गावै । मन वछित फल मोई पावै ।। आरती० ॥ इति श्री शाति जिन आरती समाप्तम् ।
Closing ।
Colophon।
१६१७. शाति-स्तुति
Ovening |
Closing |
जय जिनवर गुन रतन निधाना, परमपूज ससै तम भाना। मोह महागिर वज्र सुयेवा, सुर नर असुर करै तुम सेवा ॥ हे जिनवर मे जायो ये ही होहु सकल कल्यान अछेही । मैं निज आतीक गुन पावो सिधाल मे सिध सु जावे ।। इति शांति जी पूर्ण मई।
Colophon
१६१८ शातिनाथाष्टक
Opping ।
सकलगुणनिधान नर्वस समान मदनमदविकाश मुदितकान्त निवास मरुजकमलमित्र सर्वविधपवित्र अनुपमसुख लक्ष्मी वद्धता
शातिनाथ. ॥१॥