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________________ १८३ Catalogue of Sanskrit, Praktit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts (Stotra) Colophon: इति पार्श्वनाथ मत्र सहित स्तोत्रम् । १५९५. थार्श्वनाथाष्टक Opening . खीरजलनिधिनीरनिर्मलमिश्रदिमकरवासयम. धारात्रय भृ गारभरिकरीजन्ममरणविनासनम् । पूज्यभवजीवमौख्यदायक दुरितकल्मषपडनम्, श्रीपार्वनाथ सुदेवजिनवर मूलनायक वदनम् । नीरचन्दन मूलनायकवदनम् । इति पार्श्वनाथाप्टकम् समाप्तम् । Closing i Colophon i २५९६ पार्श्वनाथाष्टक Opening । क्षीर पयोनिधि को जल उज्वल निर्मल सीतल सू भरिडारी। पाप मिटे जिन मत्रह के सुधि जिनाम्र पदावुजधारकरी ॥ अति सु दर देउ लगाव मनोहर श्रीमूलनायक पार्श्वभरम् । शत इद्र समचित पादयुग सुभवावुधि तारन पापहरम् ॥ दशावतारो भुवनैकमल्लो गोपागना सेवित पादपद्मम् । श्रीपार्श्वनाथो पुरुषोत्तमो य ददातु सर्व समीहितानि ।।१६।। इत्याष्टक जयमाला समाप्त । Closiog Colophon १५६७. पार्वजिन आरती Opening! स्वामी पार्श्वकुमार हूकरु वीनती आपीए । तुम त्रिभुवन पतिधार मैं तुम सरन चरन गहिए ॥१॥ श्री जिनधर्म प्रभाव मनवछित फल पावई ए। भैरो पर होय सहाय अपनी उंड ? निवाहगये ए। Closing i
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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