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________________ १६८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah १५४३. पद Opening : आज गई थी ममवसरण मा जिमवचनामृत पीवा रे । आवा श्री परमेमर वदन कमल छवि हरणे निरपेवा रे आवा ॥१॥ परम दयाल कृपाल कृपानिधि इतनी अरज सुणीजै परम भगति जिनराज तुहारी अपणो कर जाणीजे ।३।। कु० । इति श्री जिन कुसलसूरि जी गीतम् । Closing : Colophon १५४४. पद Opening : Closing : Colophon | मिल जाओ .. गुरु के वचन मोती कान में। सात विसन आगे आवागवन निवारो ॥ वृ०॥ सम्पूर्णम् । १५४५ पद Opening विना प्रभु पार्श्व के देखे मेरा दिल बेकरारी है ॥ विना ।। चौरामिलाप मे भटको बहुत मी देहधारी है। मुसीवत जो पड़ी मुझपै प्रभु को खुद निहारी है। विना ॥ ॥१॥ देव त्वदीय . • तव दिव्यघोषम् ॥४|| इति काव्य सपूर्णम् । Closing Colophon: १५४६. पद Opening . Closing I देखो मतलव का ससारा, देखो मतलव का ससारा ॥ टेक ॥ भाग चदमा चद या प्रकार जीव लहै सुख अपार याको निहार स्याद्वाद की उचरनी परनति सब जीवन की तीन भात वरनी ।। परनति ||४||
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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