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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Tain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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१५०६ मंगलाष्टक
श्रीमन्नम्रसुरासुरेन्द्रमुकुट
इत्य श्रीजिनमगलाष्टकमिद
इति मंगलाष्टक सपूर्णम् ।
• कुर्व तु ते मगलम् ॥१॥
कुर्वं तु मगलम् ॥१०॥
देखे, जै० सि० भ० य० I, ऋ० ७०५ ।
१५०७. मगलजिन - दर्शन
जै जै जिनदेव के देवा, सुरनर सकल करें तुम सेवा ।
अद्भुत हैं प्रभु महिमा तेरी, वरणी न जाय अलपमति मेरी ||
निस्तार के तुम मूल स्वामी बडे भागन पाइए । रूपचद चिंता कहा जिन चरण सरणनि आइए ॥
इति च कृत जिनगुण विनती सम्पूर्णम् ।
१५०८. मुनीश्वर विनती
वो दिगम्बर गुरु चरण जग तरण तारण जान, जे भरम भारा रोग को है राजवैद्य महान । जिनके अनुग्रह दिन कवि नहि करे कर्म जजीर, ते साधु मेरे उर वसे मेरी हरो पातक पोर ॥१॥
कर जोड मूधर वीनमें वे मिले कव मुनि राय । इह आस मन की कव फल मेरे सरे सगले काज ।
समार विषम विदेस मे जे विना कार वीस || ते साधु ० ॥६॥
इति साधु विनती सम्पूर्णम् ।