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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Stotra )
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इति आरती सम्पूर्णम् ।
१५०३. मडलोद्धार- स्तोत्र
सपूर्व्वं सूरिभिराम्नात क्षेत्रपालसपर्यं का 1 तथाह मडन वक्ष्ये सर्वविघ्नोपशातये ॥१॥ यथापूर्व मया श्रुत्वा तथा एव मया कृतम् । क्षेत्रपालविधि दिव्या विघ्नदु खप्रणाशकम् ।
इति मडलोद्धार स्तोत्रम् |
१५०४ मंगल आरती
१५७
मंगल आरती कीजे भोर विघन हरन सुभ करन किशोर | टेक | अरहत सिद्ध सूर उवझाय साधु नाम जपिये सुखदाय ||१||
कहे कहाँ लो तुम सब जानो, द्यानत की अभिलाप प्रमानो । करो आरती वर्द्धमान की, पाधापुर निर्वाण स्थान की ॥ करो ॥
इति आरती महावीर जी की सम्पूर्णम् ।
१५०५. मणिभद्र - स्तोत्र
देखे, ऋ० १४०८ |
जाप एक लाख पचीस हजार करे १२५००० दिन तीन मे जब उपवास के सने चुमो वनाये या लाल वस्त्र जाप माला कनेर
फूल
नही है |
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