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________________ १४८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon. Open'ng Closing Colophon : विशेष Opening i Closing Colophon Opening इति जिनदर्शन संस्कृत सम्पूर्णम् । १४७०० जिनदर्शन प्रभु पतितपावन में अपावन चरन आयो शरण जी, यो विद आप निहार स्वामी मेट जामन मग्ण जी । या श्रद्धा मोही उर भई, कीजे तुम पद सेव 1 नवल नवल गुण गाय के जै जै जै जिनदेव ॥ इति श्री नवलकृत जिनस्तुति भाषा सम्पूर्णम् । प्रारम्भिक स्तुति कविवर बुधजन कृत है । १४७१. जिनदर्शन देखें, क्र० १४७० । जाँचो नही सुरवास इति श्री भाषा जिनदर्शन सम्पूर्णम् । १४७२ ज्वालामालिनी-स्तोत्र ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय शशाकश खगोक्षीर हारधवल । गोत्राय घार्तिकम् निर्मलोछेदनाय जाति जरामरणविनाश नाय 1 दीजीए शिवनाथ जी ॥ क्षू Closing ज्वालामालिनी ज्ञापयते स्वाहा । Colophoni इति श्री चदप्रभतीर्थ कर की ज्वालामालिनि शासनदेवी सकल दुखहरन मगलकर विजयकर स्तोत्र सपूर्णम् । विशेष- इसके आगे एक मंत्र भी दिया गया है । देखे, जै सि० भ० ग्र० ० ६७६ । १० सू ।। पृ० ३३६
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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