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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Colophon :
इति भूपाल चौबीसी भाषा जी समाप्तम् ।
१४१६. बीस विरहमान-भारती
Opening :
Closing Colophon '
आरती कीजै वीस जिनद की, विदेह क्षेत्र थानक सुखकद की। श्रीमदर जुगमदर स्वामी, वाहु सुबाहु प्रभू शिवगामी आरती। अजितनीर्य प्रभु है सिरनामी, भैरो सरन चरन तुम स्वामी ।'आरती इति श्री वीस विरहमान जी की आरती समाप्तम् ।
१४२०. ब्रह्मलक्षण
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ब्रह्मचर्या भवेमूल सर्वेषा ब्रह्मचारिणाम् । ब्रह्मचर्यस्य भोगन व्रत सवनिरर्थकम् ।। दृष्टिपूत ' - ' नवम ब्रह्मलक्षणम् ।। नही है।
Closing . Colophon .
Opening ।
Closing । Co'ophon:
१४२१. चैत्यालग-स्तोत्र इप्ट जिनेद्रभवन भवतापहारी ..." प्रकरराजविराजमानम् ॥१॥ द्रष्टमपाद्य मणिकाचनचित्रतुग सकलचन्द्रमुनिंद्रवधम् ॥१०॥ इति चैत्यालय स्तोत्रम् ।
१४२२. चक्रेश्वरी-स्तोत्र -
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श्रीचक्रेचक्रभीमे ललितवरभुजे लीलयाँ दोलयन्ति, चक्र विद्युत्प्रकाश ज्वलिनसतमुख खखगेंद्राद्यरूढे । तत्वैरूद्भतभावे सकलगुणनिधे त्व महामत्रमूर्त क्रोधोदित्यप्रतापे त्रिभुवनमहिमायाति मा देविच ॥१॥