SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakunar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arrah १४०५. भक्तामर-टीका Opening | Closing जो देवनमृमुगुटि सुभरत्नकाति तीर्तीवकास करि ते जिनपाद दीप्ति। जो पाप रूप तम घोर समूल छेदी नेदी वुडी भव जली जनहो सुगादि ॥१॥ माड्या मनात भरला मुनि शक्र मुति तो स्तोत्र पाठवदला गुरु पुन्यकीर्ति। मीवोलहा चिनमिले जिनसागराला करी क्षमानिवितो बुध पडिला ॥५०॥ इति श्री देवेन्द्रकीति प्रिय शिष्य जिनसागर कृत भक्तामर स्तोत्र महाराष्ट्रभाषा सपूर्णम् । Colophon : १४०६ भक्तामरस्तोत्र Opening : Closing | Colophon: धरामू निकल ता मदिर जाणो । जदि रसता माहि उच्चार करणो । देखे, ऋ० १३८० । इति श्री मानतु ग नामा आचार्य विरचित आदिनाथ देवाघिदेव भक्तामरस्तोत्र सपूर्णम् । Opening • Closing : Colophon विशेष १४०७ भक्तिसग्रह सिद्धान् उद्भ तकर्मप्रकृतिसमुदयान भावोपलब्धि.॥ सुगइ गमण ममाहिमरण जिणगुणसपत्ति होऊ मज्झ । इति सप्तभक्तय समाप्ताः। इसमे सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, आचार्यभवित, निर्वाणभक्ति, योगभक्ति, नदीश्वर भक्तिण सकलित हैं। देखें, ज. सि० भ० ग्र. I ० ६४० ।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy