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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah.
१३३३. सोलहकारण मंत्र
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ॐ ह्री दर्शनविशुद्धये नमः ।
Closing ॐ ह्री प्रवचनवत्सलत्वाय नमः ।
Colophon:
सपूर्णम् ।
१३३४. सूतक - विधि
इम सूतक देव जिनद कहै, उत्पति विनास द्विभेद लहै ।
जनमें दस वासर को गनिए, मरिहै तव बारह को भनिए ॥१॥
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ग्रंथ संस्कृत त है भाषा कीनीसार ।
जो मन समय उपजे देखी मूलाचार ||२४||
इति श्री मृतक विधि समुच्चय सूतक विधि सपूर्णम् ।
१३३५. तत्रमत्रसंग्रह
ॐ ह्री. ह ह ह्रौं ह्र असिमाउसा सम्यग्यदर्शनज्ञानचारित्रेभ्यो ह्री नमः आचार्य श्रीरविसेनकस्य
रक्षा दृष्टिदोषनाश कुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्री एकमुखी रुद्राक्षस्य शिवभाडागारे स्थिताय मम ईप्सित
पूरय पूरय श्री आकर्षय दुष्टारिष्ट निवारय निवारय ॐ ह्री नम. पीतपुष्पंप १०००० पश्चाद् नैवेद्य दसास होम एकमुमुखी रुक्षास
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१३३६. त्रिवर्णाचार मंत्र
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ॐ ह्री. हृ' ह्र' ह्र' ह्रो ह्र असिभाउसा सम्यग्दर्शनज्ञानि चारित्रेभ्यो ह्री नम;