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________________ १३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa & Hindi Manuscripts ( Mantra, Karmakanda) Colophon: इति श्री व्यवहार पचीसी समाप्तम् । १२६२. भक्तामरस्तोत्र-मत्र Opening Closing : इत्य यथा तव विभूतिरभूजिनेद्र धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रभादिनकृत. प्रहतान्धकार तादृक्कुतोग्रहणस्य विकाश नोपि ॥ ॥ श्री भक्तामरजी की महिमा बहुत भारी हे भारी जानना यामे जेति सिद्धि अरु मत्र है सो सपूर्ण मिद्धि मत्र उपकार के वास्ते एक एक काव्य के एक-एक मत्र का थोडा-थोडा फल विध सुधा लिखा ऐसा जानना। इति श्री भक्तामरनामा श्री आदिनाथ स्वामी का स्तोत्र श्री मानतुगाचार्य विरचित समाप्त । Colophon: १२९३. भक्तामरस्तोत्र-मंत्र Opening Closing : भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रमाणामुद्योतक दलितपापतमोवितानम् । सम्यक प्रणम्य जिनपादयुग युगदा वालवन भवजले पतिता जनानाम् । ऋद्धि मत्र जपिवा यत्र पूजनात् अष्टोत्तरशन जाप्प नित्य कीजै दिन ४६ सर्व वस होवे जिसको नामचित सो वम होवे व्रत कीजै ॥४॥ कुछ नहीं है । देखें, जै० सि० भ० ग्र० I, ऋ० ५५५ । Colophon: १२९४ चौबीस-तीर्थकर-मत्र Opening : ॐ ह्री श्री चक्रेश्वरी अप्रतिचक्रे फुट चिचक्राउरूभेईमवा सर्वशान्ति कुरू कुरू स्वाहा।
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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