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११ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramśa & lIindi Manuscripts
( Rasa-Chanda-Alañkāra-Kāvya )
१२८६ श्रुतपचमीरासा
Opening : वरत अठाई जे करै ते पाच भवपार प्राणी ।
जबूद्वीप सुहामणो लष योजन विस्तार प्राणी ॥१॥ Closing : नरनारी जे रास सुणे, मन वच रुचि गावहि ।
सुख मपति आणद लहै, वछित फल पाव हि ॥१०१॥ Colophon: इति श्रुतपचमी रासा। विशेष—इसके साथ अठाई रासा भी है।
देखे, जै० सि० भ० ग्र० I, क्र. ५१६ ।
१२८७. श्रीपालदर्शन
Opening :
ॐ नम सिद्ध मनधर सस उदघाटे जुग पाट तुरन्त । उघटवार भरम भजि गयो पुण्य फल दरसन तुम भयो ॥१॥ विनुथुले सोहै प्रतिबिंब भवि जन प्रीति वाद अनद । अजघना
Closing :
Colophon:
अनुपलब्ध ।
देखे, रा० सू• III, पृ० १४३ ।
१२८८. सुभाषितावली
Opening !
Closing |
पारात्सार प्रवक्ष्यामि कथित प्रथकोटिभि । परोपकागय पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥१॥ मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् । आत्मवत् सर्वभूतेषु पडित तद्विदो विदुः ।। नही है।
Colophon