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________________ ८८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakümnar Jain Oriental library, Jain Sidhbant Bhavan, Arrah. Colophon: इति श्री पाण्डे स्पचद शतक समाप्तम् । Opening Closing | Colophon विशेप-- १२७८. सतसइया श्री गुरनाथ प्रसादत होय मनोरथ सिद्ध । - - ज्यों तरू वेलि दल फूल फलन की वृद्धि । आई अवधि विवेक की देखी कोन अनपाय ।। काग कनक के पीतर हम अनादर भाय ॥ इतिश्री वृदावन जी कृत मतसइया चैत्र शुक्ल १५ सवत् १९५३ गुरुवार आठ बजे रात्रि को आरामपुर मे वाबू अजित दास के पुत्र हरीदास ने लिखकर पूर्ण किया । डा. नेमिचन्द्र शास्त्री वृत तीर्थद्दर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा नामक पुस्तक मे वृन्दावन की प्रवचनसार, तीस चौवीसी पाठ, चौवीसी पाठ, छन्दशतक, महत्पाशाकेवली वृन्दावनविलास आदी ग्रथो का उल्लेख है लेकिन सतसइया का कोई उल्लेख नही है। १२७६. समकिताधिकार श्री ॐकार ह्यिइ धरी लहि सरसति सुपसाय । समकित गुण फल वर्णउ इह पर भवि सुखदाय ॥१॥ विजय दशमी श्री झठापुर वर सघ सुकल सुखदाई जी । वाचक मानव दइ सुखदायक सुणता लील वधाई जी ।। इति समकिताधिकार श्री अरहदास सबन्धः। सवत् १७०२ वर्षे भाद्रपद मासे शुक्लपक्षे दशम्या दिन गुरुवार लिखित श्री काला कुन्है ग्रामे । शुभ भवतु न सदा श्री। श्री। १२८०. सम्मेदशिखर माहात्म्य Opening : Closing ! Colophon ! Opening : ' श्री जिनवर के पूजोपद सरस्वति सीस नवाय । गनधर मुनि के चरन नमि भाषा कहो बनाय ॥६॥
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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