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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली ८४ Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arrah १२६५. नेमिनाथ विवाह देखे, क्र० १२६३ ॥ देखें, क्र० १२६३ | इति श्री नेमनाथ का व्याहुला समाप्त | Opening Closing Colophon : Opening : Closing : Colophon : Opening : Closing : Colephon : Opening १२६६. पखवारा पडिवा पथम कला घटि जागी परम प्रतीत रोग रस पागी ! प्रति प्रतिपदा प्रीत उपजाव व प्रतिपदा नाम कहावे ||१|| पून्यौ पूरण ब्रह्म विलासी पूरण गुण पूरन परगासी । पूरण प्रभुता पूरण वासी कहै जती तुलसी वनवासी ॥ इति पषवाराजी समाप्तम् । १२६७. परमार्थजकडी अरहत चरन चित ल्यावो, फुनि सिद्ध सिव कर ध्यावो । वंदौ जिन मुद्राधारी निग्रंथ जती अविकारी ॥१॥ न अघाय यों हीरमै निस दिन एकछि नहूँ ना चुके । नहि रहे वरज्यो वरजदेष्यो बार बार तहाँ धुके श्री जिन सिद्धान्त सरोज सु दर ताहि मध्य लगाईए। रामकृष्ण इलाज याकी कीए एही सुख पाईए ॥८॥ इति श्री रामकृत जबरी सपूर्णम् । देखे, रा० सू III, पृ० १३७ । १२६८ पिगल मुरलीधर श्रीधर सुकवि मानि महामन मोद कवि विनोद मो यह कियो उत्तम छेद विनोद ||१||
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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