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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
१२४६. द्विपञ्चाशतिका
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अतिसूछिम करि ... ... ..." लेपये छानिय ॥२२॥ बावन कवित एती मेरी मतिमान लए। हस के सुभाइ ग्याता गुण गहि लीजियो ।।४५२॥ इति श्री बनारसीदास नामांकित द्विपचाशतिका समाप्ता।
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१२४७. फुटकर-काव्य अब हम देव का सरूप जिन सिद्धान्त के अनुसार वर्णन करते हैं सो सर्व सभासद सज्जन महासयो कू श्रद्धान करण योग्य है ।१।। देहे निर्ममता गुरी विनयता नित्य श्रुताश्यासता । चारित्रोज्वलतामहोपशमता ससारनिर्वेदता." ॥ अनुपलब्ध । १२४८. ज्ञानसूर्योदयनाटक
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अनाद्यनतरूपाय पचवर्णात्ममूर्तये। अनंतमहिमाप्राप्त सदाकार: नमोस्तु ते ॥१॥ अस्पष्ट । इति श्रीवादिचद्र आचार्यकृत श्री ज्ञानसूर्योदयनाटक सपूर्णम्
श्री पाठकाना शुभ भूयात् । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लिखित पडित परमानदेन मिति माघ कृष्ण तिथौ तृतीयाया रविवासरे सवत् १९२८ का लक्ष्मणपुरसमीपे पैतुरनगरे जिन चैत्यालये ।
देखे, रा. सू. III, ३० ६६ ।
१२४६ जैन-रासौ
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अर्हता छियाला सिद्धा अट्ट' सूर छीसा । उज्झाया पणबीसा अट्ठाईसा हवेई साहूण ।।