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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
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जसगाय पुन्न उपजाय बुद्ध पाय करो मगल अमर । सिरनाय नमो जुग जोर कार भो जिनद भौ तापहर ।।१॥ जै जै मल्ल ब्रह्मचरिज अटल बल सकल बनाए । एक एक जिन स्वाम नाम दस दस गुन गाए । सुनत सुनत चित चुनत धुनत दुख सतत प्रानी । द्यानतराय उपाय गाय जिन पाय कहानी। गद जनम जरामृत नहि मग एक उषदविगर । सिरनाय नमो जुग जोरि कर भो जिनद भी तापहर ॥३०॥ इति श्री दसथान चौवीसी सपूर्णम् ।
Colophon
१२४० ढालगण
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देव धरम गुरु वदिके क्हू ढाल गण सार। जा अवलोके बुद्धि उर उपजे सुभ करतार ॥१॥ अव जनमे नाही या भवमाही सबके साई सबजानी । तुमको जो ध्यावं तुमपद पावे कवी कहावं अधिकानी ।।६।। इति श्री ढालगण सम्पूर्णम् । श्रीरस्तु ।
Colophon:
१२४१. ढालगण
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देखें, ऋ० १२४० । देखे, ऋ० १२४०। । इति श्री ढालगण सम्पूर्णम् !
१२४२. दोहा अपनी पव न विचार ज अहो जगत के राइ । भववन छाय क्त रहे सिवपुर सुधि विसराइ ॥१
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