SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : जसगाय पुन्न उपजाय बुद्ध पाय करो मगल अमर । सिरनाय नमो जुग जोर कार भो जिनद भौ तापहर ।।१॥ जै जै मल्ल ब्रह्मचरिज अटल बल सकल बनाए । एक एक जिन स्वाम नाम दस दस गुन गाए । सुनत सुनत चित चुनत धुनत दुख सतत प्रानी । द्यानतराय उपाय गाय जिन पाय कहानी। गद जनम जरामृत नहि मग एक उषदविगर । सिरनाय नमो जुग जोरि कर भो जिनद भी तापहर ॥३०॥ इति श्री दसथान चौवीसी सपूर्णम् । Colophon १२४० ढालगण Opening Closing . देव धरम गुरु वदिके क्हू ढाल गण सार। जा अवलोके बुद्धि उर उपजे सुभ करतार ॥१॥ अव जनमे नाही या भवमाही सबके साई सबजानी । तुमको जो ध्यावं तुमपद पावे कवी कहावं अधिकानी ।।६।। इति श्री ढालगण सम्पूर्णम् । श्रीरस्तु । Colophon: १२४१. ढालगण Opening | Closing । Colophon . देखें, ऋ० १२४० । देखे, ऋ० १२४०। । इति श्री ढालगण सम्पूर्णम् ! १२४२. दोहा अपनी पव न विचार ज अहो जगत के राइ । भववन छाय क्त रहे सिवपुर सुधि विसराइ ॥१ Opening ,
SR No.010507
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy