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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली shri Devakumar Jain Oriental Library. Jain Sıddhant Bhavan, Arrab.
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श्रीमत्मिद्धजिन प्रणमामि सततं ज्ञानामृतं भूपणम् । वदे श्री जिनसेवक प्रतिदिन संध्या त्रिकाल कुरु ।। इति श्री मध्या सपूर्णम् ।
Colophon .
११६१. श्रावकव्रतसंध्या
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Closing : Colophon
देखे, ऋ० ११६० । देखे, ऋ० ११६० । दति जैनमध्या सपूर्णम् ।
११६२. श्रावकव्रतविधान
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वारा वन श्रावग तने, तिनको करू बखान । जो जिय निह चित्त धरै ताकी होय कल्यान ॥१॥ वरत ज बार इम कहै, सुनी भविक दे कान । मो निह धर पालीयौ भैरो कहै नखान । इति भावक व्रत समाप्तम् ।
Colophon:
११९३. श्रीपालदर्शन
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ॐ नम: सिद्ध मन धरसत, उदघाट जगपाट तुरत । घर वार भरम भगियों, पुन्यहि फलत दरसनभयो । तीर्थकर वदी जिनदेव सीसनबाय करौपद सेव । शुद्धभाव जाके मन भयौ सम्यक्दृष्टि मुकतहि गर्यो । इनि श्रीपालदर्शन सम्पूर्णम् ।
Colophon.
११६४. श्रीपालदर्शन
Opening :
देखे, ऋ० ११६