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अधिकारियो के कृतज्ञ है और उनसे अपेक्षा रखेगे कि भवन के अन्य अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रंथों के प्रकाशन में उनका सहयोग देश की सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा हेतु भविष्य मे भी हमे प्राप्त होगा ।
डा० गोकुलचन्द जन, अध्यक्ष, प्राकृत एव जैनागम विभाग, सपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी ने ग्रन्थावली की विद्वतापूर्ण प्रस्तावना आगल भाषा मे लिखी है। बिहार म्यूजियम के विद्वान एव कर्मठ निर्देशक श्री नसीम अख्तर साहब ने समय निकालकर इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। डा० राजाराम जैन, अध्यक्ष, संस्कृत - प्राकृत विभाग, जैन कालेज, आरा तथा मानद निदेशक श्री देवकुमार न प्राच्य शोधसस्थान, आरा ने आवश्यकता पडने पर हमे इस प्रकाशन के सम्बन्ध मे वरावर महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन दिया है । हम तीनोही जाने माने विद्वानो का आमार मानते हैं ।
श्री ऋषभ चन्द्र जैन 'फौजदार', जैनदर्शनाचार्य परिश्रम और लगन से ग्रन्थावली का सपादन कर रहे हैं। श्री ऋषभ जी हमारे संस्थान में मानद शोधाकारी के रूप मे भी कार्यरत हैं । ग्रन्थावली के दोनो खण्डो के सकलन के सपूर्ण कार्य यानी अंग्रेजी भाषा मे एक हजार ग्रथों की ग्यारह कालमो मे विस्तृत सूची तथा प्राकृत एव संस्कृत आदि भाषाओ मे परिषिप्ट के रूप मे सभी ग्रंथो के आरम्भ की तथा अत के पदो का और उनके कोलाफोन के भी विस्तृत विवरण देने जैसा कठिन कार्य श्री विनय कुमार सिन्हा, एम० ए० और श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिन्हा, बी० ए० ने बहुत परिश्रम करके योग्यता पूर्वक किया है । डा० दिवाकर ठाकुर और श्री मदनमोहन प्रसाद वर्मा ने पुस्तक के अत मे 'वर्ण क्रम के आधार पर ग्रन्थकारो व टीकाकारो को नामावली और उनके ग्रन्थो की क्रम संख्या का सकलन तैयार किया है ।
श्री जिनेश कुमार जैन, पुस्तकालय अधिक्षक, श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा का सहयोग भी सराहनीय है जिनके अथक परिश्रम से ग्रन्थो का रखरखाव होता है । प्रेस मैनेजर श्री मुकेश कुमार वर्मा भी अपना भार उत्साह पूर्वक सभाल रहे हैं । इनके अतिरिक्त जिन अन्य लोगो से भी मुझे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग मिला है उन सभी का हृदय से अभारी हूँ ।
देवाश्रम,
आरा
अजय कुमार जैन
मत्री
श्री देवकुमार जौन ओरिएन्टल लाईब्र ेरी