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प्रकाशकीय नम निवेदन
'जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली' का दूसरा भाग प्रकाशित होते देख मुझे अपार हर्ष हो रहा है। लगभग पाँच वर्ष पहले से इस सपने को साकार करने का प्रयत्न चल रहा था। अब यह महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ हो, गया है। एक पच्वपीय योजना के रूप मे इसके छ भाग प्रकाशित करने में सफलता मिांगी गंगी परी आगा है।
'जैन सिद्धात भवन मन्यावली' का यह दूगग भाग जैन गिद्धान भवन, आरा के ग्रन्थागार मे सग्रहीत मरत, प्राकृत, १५७ ग, कन्नड व हिन्दी के हस्तलिखित गन्थो की विस्तृत सूची है। इसमे लगभग एक हजार गन्यो का विवरण है। हर भाग मे इसका विभाजन दो खण्डो में किया गया है। पहले खण्ड में अग्रेजी (रोमन) मे ग्यारह शीर्षको द्वारा पाडुलिपियो के आकार, पृष्ठ मया आदि की जानकारी दी गई है। 'भवन' के ग्रथागार में लगभग छह हजार हम्नलिखित कागज एव ताडपत्र के ग्रथो का संग्रह है। इनमे अनेक ऐसे भी गन्य हैं जो दुर्लभ तथा अद्यावधि अप्रकाशित है। अप्रकाशित ग्रन्यो को सम्पादित कागकर प्रकाशित करने की भी योजना आरम्भ हो गई है। वर्तमान मे जैन मिद्वात भवन, आरा में उपलब्ध 'राम यगोरमायन राम (सचित्र जन रामायण) का कागन हो रहा है जो शीघ्र ही पाठको के हाथ मे होगा। इममे २५३ दुर्लभ चित्र है।
'जैन सिद्धात भवन ग्रन्थावली' के कार्य को प्रारम्भ कराने में काफी कठिनाइयो का सामना करना पड़ा लेकिन श्रीजी और मां सरस्वती की अभीम कृपा से सभी सयोग जुड़ते गए जिससे मैं यह ऐतिहासिक एव महत्व पूर्ण कार्य आरम्भ कराने मे सफल हुआ हूँ। भविष्य मे भी अपने सभी सहयोगियो से यही अपक्षा रखता है कि हमे उनका राहयोग हमेशा प्राप्त होता रहेगा।
ग्रन्थावली एव रामयशोरसायन रास के प्रकाशन के सबसे बड़े प्रेरणाश्रोत आदरणीय पिता जी श्री सुबोध कुमार जैन के सह्योग एव मार्गदर्शन को कभी विस्मृत नही किया जा सकता। अपने कार्यकर्ताओ की टीम के साथ उनसे विचार विमर्श करना तथा सवकी राय से निर्णय लेना उनका ऐसा तरीका रहा है जिसके कारण सभी एकजुट होकर कार्य में लगे है।
विहार सरकार एव भारत सरकार के शिक्षा विभाग एवं सस्कृति विभाग ने इस प्रकाशन को अपनी स्वीकृति एव आर्थिक सहयोग प्रदान कर एक बहुत ही महत्वपूर्ण पादम उठाया है जिसके लिये हम निदेशक राष्ट्रीय अभिरोखागार, दिल्ली, निदेशक पुरातत्व एव निदेशक सग्रहालय विहार सरकार तथा भारत सरकार के सभी सबधित