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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrib
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विशतितीर्थं पाराः कर्मारिविध्वसकाः, सनारार्णवतारणक चतुरा इद्रादिदेव मिता । अतातीतगुणाकरा सुखकरा मोहाधकारापहा,
. मुक्ति श्री ललना विलास ललिता रक्ष तु वो भक्तिकान् ॥ इति विशति विद्यमान तीर्थंक- पूजा सम्पूर्णम् ।
विशेष - - चतुविशति के बाद विशति विद्यमान तीर्थङ्कर पूजा
( समच्चय ) भी लिखी गई है ।
८४. विंशतिविद्यमानजिनपूजा
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देखें, क्र० ८१३ |
इह जिणवाणि विसुद्धमइ जो भीयण नियम धरई । सो सुविद सपपतह विकेवारणाण विनुत्तरई ॥ इति सम्पूर्णम् ।
९८५. विंशतिविद्यमान जिनपूजा
व
श्रीजिन बीसौं वरतमान सुखखान । द्वीप अढाई खेत में श्री विदेह सुमथान ॥
•मतमर विक्रमविगतः वसु जुग ग्रह ससिकद । जेठ शुद्ध प्रतिपद सुदिन पूरन भयो सुछद ।
; इति श्री सीमधरादि वीसा विहरमान जिन पूजा सिखिर चन्द्र-अग्रवाल गोईल गोत्री काशी वासी कृत समाप्त । सवत् १६२८ जेष्ठ शुद्ध ( सदी) प्रतिपदा को समाप्तम् । लिखा सिखिर दि यह प्रति लिखि स्तिी यंत्राशुक्ल प्रतिपदा शुक्रवार सम्वत् १६४१ को सो जयवत प्रवर्ती राजा प्रजा सर्व, आनद होठ । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु / शुभस्तु "
१६६ विमानशुद्धि विधान
ar नव्य विमान चेतस्य संप्रोक्षण क्रिया । कार्यापतिना मान यथा भवेत् ॥