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,३२३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramasha & Hindi Manuscripts
( Puja-Parha-Vidhāna)
जैन अन्यकर्ता और उनके ग्रन्थ नामक ग्रन्य तालिका में एक पमनदी (भट्टारक) वि० सवत् १३६२ का उल्लेख मिलता है, साथ ही साथ उनकी कृतियो मे आराधनापग्रह नामक एक आराधना ग्रथ का जिक्र भी उपलब्ध होता है। बहुत कुछ सभव है कि यही पद्मनदी भट्टारक इमा वज्रपजर राधनाविधान के रचयिता हो। मल्लिषेण और इन्द्रनन्दि के नाम से भी 'वज्रपञ्जराराधना पूजा' प्राप्त होती है ।
९८१. वासुपूज्य पूजा
Opening ! ,
Closing!
वासुपूज्य जिन नौ रत्नत्रय शेषर धारयो। ' द्वादश तप में गार वधूशिव दृष्टि निहारौ ॥ चगापुर थान पचकल्यान सुरनरखग वदते सवही ।
हैं पूजू ध्यावू' गुणगण गाबू वासुपूज्य दे शिव अबही ।। इति वासुपूज्य पूजा सम्पूर्णम् ।
Colophon
९८२. वास्तुपूजा विधान Opening।
अहिदीशप्रतिमाप्रतिष्ठा-घ्निधाननिर्विबयसमाप्तिसिध्य । -- ततोकुरा दिक्षसार्वपूर्व दिने वपाया विदधीत नांदी ।
" . तत्रापि पूर्व विददीत वास्तु दिवौकसा मेकपदे स्थिताना । । ' . - 1, ततः परे वा विधिवत्सपयाँ क्रमेण सामान्य विशेष कल्पाम् ॥१॥ Closing: - सस्थात्य मध्येसुदिशासु बाह्य जलप्रपूर्णसहिरण्यभागत् ।
-- - सुवस्त्रमाल्याध्वजयंणार्प कुमं यते वास्तु समृद्धिसिध्य.॥ Colophon | - इति वास्तुपूजा विधा समाप्तम् ।। (मगलमस्तु । एन० - ।. .. एन. राजा० । ..• ....
देखे-Catg. of Skt &apkt: Ms., P.691.
९८३. विद्यं नानचतुर्विशतिजिनपूजा Opening - पोते समाख्य, ससाराणवपारगा।
'. - स्युस्तेषां 'तुलमानने, सुलभाः सुखप्राणयः ।।
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