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३०६ Catalople of Sanskrit. Prakrit. Apablirashi & Hindi Manuscripts
(Pilyi-Patha-Vidhina)
भदामामिनेय वामि दिगिएहाद विसेयपहरे वितणि । सरि निहरि जाएप्पिण पोगह सत्तिपमाण लए
पिण॥ पण मार गिउसारउवउपयटर जो आयर। मोगुर पर पुनर हा मंद्रसिदि विलासिणि अणु
Cloxing
Colophon .
९३२. रत्नत्रय जयमाल
Opening:
Clong ।
जय जय सदपर्णन पग मग निग्गन मोहमहातम तम्वारण । उपमग गगनदिवाकर मानगुणकर पग्ममुक्ति सुखकारण । पद पारिनल य गमायोगिय पवित्रधी ।
अभिप्रेतापमिद का ग प्राप्नोति पिर नर ।। इति नचाचारमनयगान मपूर्णम् । ६३३. ऋषिमंडल पूजा
Coleplica
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Closing :
कर जुग जोरी गारदा, प्रनाम देवगुरुचर्न । ऋपिमल पूजा रची, श्री जिनयर पद सने । भवत् मम तप फ भू, मागिर वाव असेत । अद्धराम पूरन कियो, पद्रनाथ सकेत ॥ इति श्री ऋषिमडल पूजा सम्पूर्णम् । शुभ संवत् १९०१ मिति सावन सुदी मप्तमी पुस्तक लिखी गोरखपुर मंगर श्री पाश्यनाथ जिन त्यालये पठन हेतु भव्य जीवन के लिखायो लरला मानिकपद ।
Colophon :
६३४. ऋषिमंडल पूजा
Orening :
Closing: Colophon
देखें, ऋ० ८३३॥
देखें, ० ८३३ । इति श्री रिपमडल जत्र मबन्धी पूज'मम्पूर्णस् ।, शुभ सम्वत्