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________________ २७५ Catalogue of Sanskrit, Prakeit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhāna) . अनुभव अनूप ऊपरड्त अनत (ज्ञान) ग्यान, अनुभव अतीत त्याग ग्यान सुखराम है। Closing : सपत सेप गुनयान थे छुटे एक गत देवकी। यौं कही अरय गुरु ग्रन्थ में सति वचन जिनसेवकी ॥ Colophon . इति श्री चंद्रशतक सपूर्णम् । मितीमाघशुक्ल द्वितीया सोमवासरे मम्बत् १८६० साल मध्ये । लिखापित श्री धर्ममूरति बाबू अच्छेलाल जी जातिअग्रवाल.वसया माराके । लिपिकृतं नदलाल पाडे छपरा के दौलतगंज मध्ये। श्रीजिन भजेत् । ८१८. चैत्यालय प्रतिष्टाविधि Opening : Closing | सुकनासस्य पर्यन्त वेदिकास्तरत्तरे । गर्ने प्रनरक कृत्वा वेदिका तत्र विन्यसेत् ।। शातिकौष्टिक इति पटकर्मविधि - "। ... .. ... मुक्तिकातापिवश्या । इति यत्रार्चन विधि समाप्ताः । Colophone ८१६. चतुर्विशति पूजा Opening । ऋषभ अजित ... -पुष्प चढाय ।। Closing | भुक्ति मुक्ति दातार ... ... सिव लहै ।। Colophon: . इति श्री समुच्चय चौवीसी पूजा सपूर्णम् । इह पूजन जी की पोथी चढाया व्रत के उद्यापन मे बाबू परमेसरी सहाय की भार्या वनसीकुवर ने। गोप गागिल । मिती फागुन वदी २२ । सन २२८३ साल । विशेष-इसको १४ प्रतियां है। Opening : ' ६२०. चतुर्विशतितीर्थङ्कर पूजा प्रणम्य श्री जिनाधीशे लब्धिसामस्तिसयुतम् । चतुर्विशति तीर्येश वक्ष्क्षे पूजा क्रमागताम् ।।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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