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________________ २७४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली shr'e Devakumar Jain Oriental Librory Jain. Siddhant Bhavan, Arrab ८१४. वृहत्सिद्धचक्र पाट Opening: Closing : प्रणम्य श्री जिनाधीश लब्धिसामस्त्यसयुतम् । • श्री सिद्धचक्रयत्रस्याच सहस्त्रगुण स्तुवे ॥ श्री. काष्ठासधे ललितादिकीतिना भट्टारकेणैव विनिर्मित विरा नामावलीपद्यनिवद्धरूपिका भूयात्सता मुक्तिपदाप्तिकारणम ॥ इति श्री बृहत्सिद्धचत्रपाठ समाप्तम् । सवत् १९६१ चद्रनाङ्क चद्रेदे माधवे सितगेमुनो स्वनिमित्त लिखेत्सीतारामनामकरेणश । Colopon: । ८१५. वृहत्सिद्धचक्रविधान Opening Closing : उधिोरयुत सविंदुसपरं ब्रहमस्वरावैष्ठितम् । वर्गाः पूरितदिग्गावुजदस मृतत्वधितत्त्वान्वितम् । अन्त पत्र तटवनाहतयुल होकार सवैष्टितम् देव ध्यायति यः स्वमुक्ति शुभगो वैरिभकठण्ठे ख ॥ निरवशेपनिरसनाय दिव्यमहाय॑म् निर्वपामि स्वाहा पूर्णाध्यम् । एव शातिधारादि । पुष्पाञ्जलिः ॥ इति मर्वदोषयरिरहार पूजा । १६. वृहत्क्रान्ति पाठ Colophon ! Opening ! भो भो भव्या श्रुणुत वचन प्रस्त्रत सर्वमेतत् । '' ये यात्राया त्रिभुवनगुरोराहता भक्तिभाज॥ " Closing : अह तित्थयरमाया देशिवावी तुह्न नयरनिवासिनी अह्न शिब तुह्नशिव अशिवोपाम शिवभवतु स्वाहा. ..' Colophon. इति वृहद् शाति समाप्तम् । सकल पडित शिरोमणि पडित श्री दानकुशलमणि गणिराज कुशल शिप्य गुमानकुशल लिखितम् । । ८१७. चन्मशतक । Opening. . अनुभव अभ्यास मे निवास शुद्ध चेतन को, अनुशव सरूप शुद्धबोध को प्रकाश है। ,
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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