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________________ २६४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan, Arrab ७७७. स्तोत्र संग्रह गुटका Opening : Closing देखें, ऋ० ६०७। दरसन की देवको आदिमध्यअवसान ।। सुरगन के सुखभुगत के पावं पद निर्वाण ॥२०॥ इति विन सपूर्ण ॥ Colophon ७७८. स्तोत्र संग्रह Opening : देखें-क्र० ७८५ । Closing __ भाषा भक्तामर कियो हेमराज हित हैत । जे नर पढे सुभावसो ते पावै शिवखेत ।। Colophon इति भक्तामर स्तवन सम्पूर्णम् । विशेष-लगभग एक सौ स्तोत्र, पाठ, पूजा आदि का मग्रह इस गुटका है । ७७६, स्तोत्र संग्रह Opening : प्रणम्य परयाभक्त्या देव्या पादाम्बुज विधा। नामान्यष्टसहस्राणि वक्षे तद्भक्ति सिद्धये ॥१॥ Closing . - इति पुन मत्र ॐ ह्रीं क्ली क्ल श्रीं ह्रीं नम.। लक्ष जापत सिद्ध होय। Colophon ! इति शारदा स्तुति सम्पूर्णम् ।। विशेष—इस ग्रन्थ मे ३७ स्तोत्र मत्रादि का संग्रह है। ७८०, स्तोत्र : Opening : श्री नाभिराजतनुजः सदयाविहारी, देवोजितो जयतु कोसदयाविहारः। श्री शभवो हतभवोदितसारसार , श्री शोभिनदनजिनोदितसारसार. ॥१॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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