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• २५६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
(Stotra) -
७५६: सकटहरण विनती
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Closing ।
सारद दीजे ग्यान अपार । ' मुझ भरमन छुटे ससार ।। वर्द्धमान स्वामी जिनराय । करो वीनती मनचित लाय ।। इह वीनती नित भणे प्रागी, सिवधाम पावै परै ।
सुभ भावधर मन सदा गुणिय, सुद्ध चेतन सो तर ॥३७।। इति सकटहरण वीनती सम्पूर्णम् ।
Colophon
७६०. शान्तिनाथ आरती
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Closing : Colophoni
शांत जिनेसरं स्वामि वीनती अवधार प्रभु । सेवक जनसाधार, पापपनासन शाति जिनो । पाटन नगर मझार, शातकरण स्वामी शात जिनो ॥ इति शातिनाथ बीनती ( विनती )। ७६१. शान्तिनाथ स्तोत्र
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नानाविचित्र भवदु खराशि नानाप्रकार मोहादियणशिः पापानि दोषानि हरति देवा इह जन्मशरण तुवशान्ति
नाथम् । जपति पठति नित्य शान्तिनाथादिशुद्धम्, स्तवनमधुगिराया पावतापापहारम् । शिवसुखनिधिपोतं सर्वसत्त्वानुकपम्, ' कृतमुनिगुणभद्र भद्रकार्येषु नित्यम् ॥६॥ इति श्री शान्तिनाथस्तोत्रगुणभद्राचार्यकृत समाप्तम् ।
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Colophon । ' -
। ७६२. शान्तिनाप प्रभातिक स्तवन Opening ! . सुरेनं सदासक्षरद्दानतोय वरं हारचन्द्रोज्वल सोरभेयम् । ददातुच्चल शातिनाथो जिनो नो यदं वक्षताल सदा
सुप्रभातम् ॥१॥