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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन प्रम्यावली २५८ Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artoh Opening Closing: Clolophon : Opening: Closing Colophon : Opening: Closing: Colophon : Opening Closing : Colophon ७५५. शन स्तवन ॐ नमो अहंते परमात्मने, परमज्योतिषे परमपरमेष्ठिने परमवेधसे परमयोगिने "I - तथाय सिद्धसेनेन लिलिखे सपदा पदम् । इति शत्रस्तव समाप्तः । सवत् १७७४ वर्षे पौष वदि ८ दिने लिखत श्री कास्मावाजारमध्ये | ; ७५६. सत्तरिसय स्तवन तिजयपहुतपासय अट्टमहापाडिहारजुत्ता' समयखित विधाण सरेमि चक्कजिणदाण ॥ इस रिस त समम त दुवारिपडि निहिये । दुरियारि विजयत त निजात्मान निच्चमचेह ||१४|| इति सत्तरियस्तवन सम्पूर्णम् । ७५७. सम्मेदाष्टक एकैक सिद्धकूट आधिव्याधि. प्रवाधिः " • इति श्री जगद्भू ष्णकृत सम्मेदाप्टक सम्पूर्णम् । does राजते स्पृष्टराजकं ॥१॥ - जगद्भ षणानाम् || deco ७५८. समवशरण स्तोत्र वृषभादयानभिर्वद्याश्वदित्वा वीरपश्चिमजिनैन्द्रान् । भक्त्या नतोत्तमागः स्तोष्टोतत्समवशरणानि ॥ अगुनवामहंत माग्धर्णदि, व्रतिरचित सुवर्णानेकपुष्पप्रजानाम् । सभवति नुतिमाला यो विधत्ते, स्वकठे, प्रियपतिरमश्री मोक्षलक्ष्मीवधूनाम् ॥ इति श्री लघुसमतमद्र स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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