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________________ २३० थी जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावती Shri Devakumar Jain Oriental Library, Juin Siddhant Bhavan, Arruh ६४६. चतुर्विंशति जिन स्तोत्र Opening : Closing ! आदिनाथ जगन्नाथ अरनाथ तथा नमि । अजित जितमोहारि पाश्वं वन्दे गुणाकरम् ।।१।। तद्गृहे कोटिकल्याणश्रीविलसति लालया। क्षुद्रोपद्रवभूतादि, नश्यति व्याधिवेदना ॥७॥ इति चतुर्विशतिजिनस्तोत्र समाप्तम् । Colophon : Opening ६५० चतुर्विशति जिन स्तुति सद्भक्तानतमौलिनिर्जरवग्भ्राजिघ्नुमौलिप्रभा, समिश्रारूण दीप्ति शोभिचरणा भोजद्वय. सर्वदा । सर्वज्ञ पुरुषोत्तम सुचरिते धर्मोधिना प्राणिना, भूयाद्भू रिविभूतये मुनिपति श्री नामिजिन ।। यस्या प्रमादात्परिपूर्णभाव भूत सुनिर्विधूतयास्तवोय । जगत्त्रयी जनहितकनिष्टा वाग्देवतासाजयतादजस्त्र ।। इति श्री चतुर्विशति जिनस्तुति.। Closing Colophon : Opening : ___ Closing . Clolophon. ६५१. चरित्र भक्ति येनेंन्द्रान भुवनत्रयस्य - .. रभ्यर्चनम् ॥१॥ . . समाहिम ण जिणगुणमपत्तिहोउ मक्त । इति चारित्रभक्ति सम्पूर्णम् । ६५२. चौबीस तीर्थङ्कर स्तोत्र Opening : सिद्धप्रियप्रतिदिन प्रतिभासमान - ... । - " " प्रापेजनैविनुतनुपदवीक्षणेन । Closing तुष्टि देशनयाजनस्य मनसे येनस्थितिदसिता । शुभधियातात सतामीशितः । Colophon! इति श्री देवनदयाचार्य कृत चौवीस महाराज जाजमक काध्यमई महास्तोत्र सम्पूर्णम् ।- .
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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