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________________ २२६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Stotra) त्रिलोकेश्वर निश्चल नित्यरूपम् सदा पावन भावयामि स्वरूपम् ।। Colophoni नही है। ६४६. चन्द्रप्रभ स्तोत्र Opening : शशाकशखगोक्षारहारधवलगात्राय " • • इत्यादिना। Closing: .. घेघे आ को क्षी क्षु क्षी क्षा ज्वालामालिनिज्ञापतये स्वाहा । Colophon ' इति चद्रप्रभस्तोत्र ज्वालामालिनि स्तोत्र सम्पूर्णम् । देखें-जि० र० को०, पृ० १२० । ६४७. चन्द्रप्रभशासन देवी स्तोत्र (ज्वामामालिनी स्तोत्र) देखें-क्र. ६४६ । Opening: Closing Colophon ! घेघे, ख ख ख ख ह्रां ह्री ह्रा-४ मा को ही क्षा क्षी वी क्ली क्लू ही ह्री क्ष्वी ज्वालामालिन्या ज्ञापयति स्वाहा । इति श्री चद्रप्रभुशासनदेच्या स्तोत्र सम्पूर्णम् । देखे-(१) जि० र० को०, पृ० १५१ । (२) रा. सू. III, पृ० २३६ । ६४८. चतुर्विशति जिन स्तोत्र Opening | आद्योवर्वसहस्त्रमौनमगमत्प्राप्तो जिनो द्वादश., द्विसप्तव च सभवोष्ट च दश. श्री नदनो विशति । छद्मस्थो सुमतिश्चषष्ठजिनप षण्या समासत्रस्थिति, वर्षाण्यत्रनवेव सप्तमजिनो मासत्रय चद्रभ ॥ एते सर्वजिना शतक्रतुसमभ्यर्यक्रमाभोरुहाः । तद्वाश्चविरूद्धवाच्यरहिता कुर्वन्तु मे मगलम् ।। इति श्री चतुर्विंशतिस्तोत्र सपूर्णम् । Closing , colophon!
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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