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________________ Catalogue of Sanarit. Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darsana Acara ) Colophon : Opening Closing Colopnon : Opening नामा िवचनका नपूर्णम् । लिखितमिद [ पुस्तक श्रावक नौ (नव) नव पुत्र नन्हे रामजी योदूका का सवाई मिति भाषा मुद्री १० नवत् १८७० का । ३७०. सामायिक वचनिका Closing: Opening: देखें- ३६६॥ २०३६ सामाजिक वचनिका नपूर्णम् । ३७१. शानन प्रभावना Closing : निवद्भगुगलकरणानंतर परापरगुरून् शास्त्राणिपूर्वाचाविविनथाः उपदेशा गुर्वाकारहरय प्रकाशका व्यवहारः कर्मयोग जिनप्रतिष्ठाया शान्त्राणि पाच व्यवहारश्च तेपा दृष्टिः नम्मा प्रतिपतिया १३३ 1 1 प्रकृत्या नहींदवजिनेन्द्रप्रमाणणा. त्र जैनेन्द्रन्याकरण च पति महारेरात् जयवर्मा नाममानवाधिपति पतिदेवचद्रादीन् श्लोके - नोपरतुन वशिप्रविशालकोर्योदय जयति म बालनरस्वती महाक विमदनादय विदाधेमध्ये भट्टारक दिनयचद्रादय अहंत्प्रवचन मोक्षमार्गे स्वय कृतनिर्धन स्फुट प्रतिभाग सिद्धिशब्दो कचिदुप्रातेषु यम्य तत् जिनागम निर्यासभूत आराधनासारभूपालचतुविशतिस्तवनाद्ययं प्रतिष्ठाचार्य सर्वाधिन वसुनदिसंद्धांत्याद्याचार्यविरचितानि स्पष्टीकृत्य पचकल्याणा (का) दिविधानकयनात् शासनप्रभावना अभ्यर्चनम् । अनुपलब्ध | ३७२. शास्त्र-सार-समुच्चय - श्री विवुधधजिनके लि चित्सुख दमिद्धपरमे पितगलम् । भावजजयमावुगल भविसिपोडे व पटुपडवेनक्षयसुखमम् ॥ १ ॥ देखे – जि० २० को०, पृ० ३८३ ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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