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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakuma Jain, Oriental Library, Jain Siddh in Bhav in, Arrah
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इति श्री स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा नाम प्राकृत ग्रंथ की देश भाषामय वचनका सम्पूर्ण । मिती कार्तिक वदी ५ वार गुरु सम्वत् १९१४ को समाप्त भया । लिखा चढूनाल काएथ ( कायस्थ ) निजत्राय । जौरीलाल अग्रवाल नारायण दास के बेटा ने मोकामी आरे वास्ते सिरी (श्री) असदासके ।
२७८. क्रियाकलाप टीका
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जिनेन्द्रमुन्मीलितकर्मवन्ध, प्रणम्य सन्मार्ग कृतस्वरूपम् । जनतबोधादि भव गुणौघ, क्रियाकलाप प्रकट प्रवक्ष्ये ॥ एतावश्सख्यश्रवाच्छित्रयदपरिमाण श्रुत पचपद पचभि, पादैरधिक नामानि - ११२८३५८००० ।
इति श्रीपडित प्रभाचन्द्र विरचिताया क्रिया कलापटीकाया श्री मूलस समाप्तम् । सवत् १५७० वर्षे चैत्रवदि ७ शुक्रवासरे। सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे श्रीसिंहनन्दिनः शिष्यनीवाई विनय श्री
लिखायितम् ।
देखे, Catg of Skt & Pkt Ms. P 635
२७६. क्रियाकलापभाषा
समवसरण लछमी सहित वर्द्धमान जिनराम । नमो विबुध वदित चरण, भविजन को सुखदाय ॥ जबलौ धर्मं जिनेसर सार ।
जगतमाहि वरतै
सुखकार ।। तवली विस्तर ज्यो यह ग्रथ । भविजन सुरसित् दायक पथ ॥ ११०० ॥
इति श्री क्रियाको भाषा मूलत्रेपन क्रिया ने आदि दं
भर और ग्रन्थ की शाखका मूलकथन उपरि सम्पूर्णम् ।
इति क्रियाकलाप भाषा समाप्तम् ।
२५० लघुतप्वार्थसूत्र
दृष्ट चराचरं येन केवलज्ञानचक्षुषा । त प्रणम्य महावीर वेदिका त प्रवक्ष्यते ॥