SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०३ Catalozue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramiha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Darsina, Acira) Colophon • नि श्री स्यामि , जातियटोकाया विधविद्याधरपटभापा कविवस्वति भट्टारक श्री गुमनद्रविरचिताया धर्मानुप्रेक्षाया द्वादशमोधिकार नगाप्तम्। यार्णः सवत् १८५८ वर्षे शाके १७२३ ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे तिची पाठी मगलवागरे हिनार पट्टे लोहाचार्याम्नाये काठामधे पुम्भारगणे माथुरगम्चे श्रीमद्भट्टारकत्रिभुवणकीति जी तत्व भट्टारक भी रोमकीति जी तत्पट्ट भट्टारक श्रीगहसकीत्ति जी तत्पट्ट भट्टारक श्री महेन्द्रकोत्ति जी तत्पट्ट भट्टारक श्रीदेवेद्र. फीत्ति जी तत्पट्ट भट्टारक श्री जगत्तीति जी तत्पट्टे भट्टारक श्री ललितकीर्ति जी तत् भाता पंडित माणदराम तच्छिष्य खेमचन्द्रग प्रयागमध्ये लिपि कृतम् । स्वय पठनार्थम् । शुमस्तु । २७६।२. कार्तिकेयानुप्रेक्षा Opening: अथ रवामिकातिकेयो मुनीद्रोऽनुपेक्षा व्याख्यातुकामो। मलगालनमगावाप्तिलक्षण मगलमाचण्टे ॥ Closing : निहुयणपहाण सामि कुमारकाले वि तवियत्तवयरण । वसुपुज्जसुय मल्लि चरिमतिय ससुवे णिच्च ।। Colophong इति स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा समाप्ता। मिती कार्तिगमासे शुभे कृष्णपक्षे तिथि ७ वार सोमवार सवत् १८६० का साल __ मध्यचीरजीव अमिचन्दगोतसेठी लिखायत चिरजीव श्री चन्द्रेण स्वकीय पठनार्थ वाचपढ ज्यानजथा योग्य वचज्यो । श्रारस्तु कल्याणमस्तु । यादृश .... ... दीयते। इद पुस्तक राज्येद्रकीर्तिमुने पठनार्थ श्रीचन्द्रेणदत्तम् । २७७. कात्तिकेयानुप्रेक्षा Opening : प्रथम रिषभजिन धरम कर, सनमति चरन जिनेश । विधनहरन मगलकरन, भवतम दुरन दिनेश ।। Closing जैनधर्म जयवत जग, जाको मर्म सुपाय । वस्तु यथारथ रूपलखि, ध्याये शिवपुर जाय ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy