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________________ १०१ Catalogue of Sanskrit. Prakrit, Apabhrainsha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Dardana, Acara ) Colophon: इति श्री ज्ञानार्णवस्य स्थितिगनटीकातत्त्वप्रय प्रकाशिन समाप्ता। २७१. कर्मप्रकृति Opening : प्रक्षीणायरण समोहप्रत्यूह फर्मणे । बनतानतघोष्टि सुखवीर्यात्मने नमः ।। Closing : जन्ति विमुताशेपपापाजन समुच्चया. । मनमानतघी दृष्टिसुपवीर्या जिनेश्वराः ॥ Colophone पति गृतिरियमभयचर निद्धान्तचक्रवतिन । भद्रमस्तु स्थाहादशामनाय । देखें--जि० २० फो०, पृ० ७२ । २७२. कर्मप्रकृति ग्रंथ Opening : देखें-१० २४५। Closing : गे--T०२४५ । Colophon: इति श्री नेमिचदमितान्ति विरचित कर्मप्रकृति प्रथ ममाप्तः ॥ सवत् १३६६ का शुभमस्तु ।। विशेष-यह प्रय श्री देवेन्द्र प्रसाद जैन द्वारा दिनाक १३-६-१९१८ को श्री जैन सिद्धान्त भवन. आरा को सादर समर्पित किया गया है। देखें-(१) जि० र० को०, पृ० ७१ । (2) Catg. of skt & Pkt Me., page, 632. २७३. कर्मविपाक Opening : सिरिवीरजिण वदिय, कम्मविवाग समासओ वुच्छु । कोरड जिराणु हेहिं जेण सोमणराकम्म । Closing ! गाहगाभयरीए व दमहत्तरमयाणुसारीए । टीगाए णिम्मियाण एगुणा होइ णऊईऊ (ओ)॥ Colophon इति श्री कर्मग्रंथ सूत्रसमाप्तम् । षष्ट कर्मग्रथ । श्रीरन्तु । सवत् १९६६ शाके १७३१ मिती भादववदि ३ सोमवारे तया विज
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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