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८ गन्त्र, कर्मकाण्ड
५५० स ५८८ & आयुर्वेद
५८६ रो ६००. १० स्तोत्र
६०१गे ८०० ११ पूजा-पाठ-विधान
८१ मे १६७. अन्तिम शीर्पक के अन्त मे आठ ग्रन्य ऐसे हैं, जिन्हे विविध-विषय के त्य में रखा गया है। यह विषय विभाजन मामान्य कोटि का है, क्योकि सभी ग्रन्थो का विषय निर्धारित करने हेतु उसका आद्योपान्त सूक्ष्म परीक्षण आवश्यक है।
___ ग्रन्थावली का दूसरा खण्ड 'परिशिष्ट ' नाम से अभिहित है। इसका यह खण्ड वहुत ही महत्वपूर्ण है। प्रशस्तियो मे अनेक महत्वपूर्ण तथ्य लिपिवद्द हैं। अनेक काफी प्राचीन पाण्डुलिपिलां भी हैं,जिनका समय प्रथम खण्ड मे दिया गया है । प्रमस्तियो के अध्ययन से विभिन्न सवो, गावो, गच्छो तथा भट्टारको के सन्दर्भ मामने आये है। यह ग्रन्थ कुछ लोग अपने स्वाध्याय के लिए लिखवाते ये तथा कुछ लोग शास्त्रदान के लिए। ग्रन्थ श्रावको, साधुओ तथा भट्टारको द्वारा लिखवाये गये है। पाण्डुलिलियो का लेगन भारत के विभिन्न देशो ( वर्तमान राज्यो मे । हुआ है। जैन मिहान्त भवन, आरा न भी पर्याप्त लेखन कार्य हुआ है। जो पाण्डुलिपियाँ जन्य मग्रहो से स्थानान्तरित नहीं की जा सकती थी, उनकी प्रतिलिपियां वही से कराकर मगाई गई ह । अविकाश पाण्डुलिपियो मे पूरे ग्रन्थ को श्लोक मख्या या गाथा सख्या भी दी हुई है, जिसमे पूरे अन्य का परिमाण भी निश्चित हो जाता है। इस ग्रन्थावली का यह खण्ड एक ऐमा दस्तावेज है, जिससे अनेक नवीन सूचनाएँ दृष्टिगोचर हुई है।
ऋ० १०३/१ में उल्लिखित 'राम-यशोरमायनरास' मचित्र ग्रन्य है। इसके कर्ता श्वेताम्वर स्थानकवासी सम्प्रदाय के केशराज मुनि है। कर्ता ने रचना मे स्वय के लिए ऋषि, ऋषिराज, ऋषिराय, मुनि, मुनीन्द्र, पडितराज आदि विशेषण प्रयुक्त किये हैं। ग्रन्थकी कुल पत्रसख्या २२४ है, जिसमे से वर्तमान मे १३१ पत्र उपलब्ध है। इन पत्रो मे २१३ रगीन चित्र है। चित्र राजपूत शैली के है। यह रचना राजस्थानी हिन्दी मे है तथा आचार्य हेमचन्द्र रचित 'त्रिषष्ठिगलाकापुरुषचरित' की रामकथा पर आधारित है। इसका प्रकाशन देवकुमार जैन प्राच्य शोध संस्थान से किया जा रहा है। क्र. २२३ द्रव्यसगह टीका ( अवचूरि ) है, जो अद्यावधि अप्रकाशित हे। टीका मक्षिप्त एव सरल संस्कृत भाषा मे है। किन्तु पाण्डुलिपि मे टीकाकार के नाम, समयादि का उल्लेख नहीं है।
परिशिष्ट तैयार करने मे 'यादृण पुस्तक दृष्ट्वा तादृश लिखित मया' का अक्षरश. पालन किया गया है। अनुसन्धित्सुओ की सुविधा के लिए विभिन्न हस्तलिखित ग्रन्थो की सूचियो के कास मन्दर्भ दिये गये है, जिनमे राजस्थान के शास्त्र भडारो की सूची भाग-१ से ५, जिनरत्नकोप, आमेर सूची, दिल्ली जिन ग्रन्थ रत्नावली, कैटलॉग आफ सस्कृत मैन्युस्क्रिप्टस्, कैटलॉग आफ सस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्क्रिप्टम् प्रमुख है ।