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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Devi'cunar Jan, Oriental L brary. Jain Siddhin' Bhavin, Arrah Sh (१) जि० र० को०, पृ० ३४ । . (३) प्र. जै० सा०, पृ० १०६ । (४) आ० सू० पृ०, १३ । (५) रा० सू० II, पृ० ८०, १९४ । (६) रा० सू० JII, पृ० १६६ । (६) दि० जि० र०, पृ० ३८ । (7) Catg. of skt. & Pkt Ms., page, 626 १६४. आ नापपद्धति Opening : देखे, क्र० १६३ । Closing : देखे, ऋ० १६३ । Colophon : इति सुखबोधार्यमालापपद्धति श्रीदेवसेनपडित विरचिता समाप्ता। लिखत पूर्वदेश आरा नगर श्री पार्श्वनाथजिनमदिर मध्ये काष्ठासघे मायुरगच्छे पुष्करगणे लोहाचार्याग्नाये श्री १०८ भट्टारकोत्तमे भट्टारकजी श्री ललितकीर्ति तत्पट्ट मार्दवापरनामी श्री १०८ राजेन्द्रकीर्ति तत्शिष्य भट्टारक मुनीद्रकीति दिल्ली सिंहासनाधीश्वर ने लिखी सवत् १९४६ का मिती भादव वदी ६ वार रवि कू पूरा किया। १६५. आराधनासार Opening : Closing : Colophon : विमलवरगुणसमिद्ध सुरसेण वंदिय सिरसा। णमिऊण महावीर वोच्छ आराहणासार ॥१॥ अमुणियतच्चेण इम भणिय ज किंपि देवसेणेण । सोहतु त मुणिदा अथि हूजइ पवयणविरुद्ध ।।११।। एव आराधनासार समाप्तम् । द्रष्टव्य-जि र को, पृ ३३ । ___Catg. of Skt. & pkt. M. P.626 १६६. आराधनासार Opening | प्रथम नमू महन्त कू, नमू मिद्ध शिरनाय । आचारज उवझाय नमि, नमू साधु के पाय ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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