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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artah Colophon : इति श्रीसिद्धचक्रपूजातिशय प्राप्ते श्रीपालमहाराज चरिते भट्टारक श्री मल्लिभूषण शिष्याचार्य श्री सिंहनदि ब्रह्म श्री शातिदासानुमोदिते ब्रह्मनेमिदत्त विरचिते श्रीपालमहामुनीन्द्रनिर्वाण गमनवर्णनो नाम नवमोधिकार सम्पूर्णम् । सवत् १८३७ श्री मूलसघे वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे । कु दकुद आचायाम्नाये हारक श्री गुलालकीर्तजी तत् शिष्य हरिसागरजी तत् पुन लालजु पडित इद पुस्तक लिखित्वा परोपकाराय इद हिरदै नग्रमध्ये श्रावण शुक्ल पचम्या सपूर्णी जात । शुभ भूयात् । मोसमात गोवीदा कुवर जौजे बाबू महावीर सहायजी कीने दललाक्षणी के उद्यापन मे चढाया मीति भादो शुक्ल १५ सवत् १९४५ । द्रष्टव्य-जि र० को०, पृ० ३६७ । Catg. of Skt. & pkt. Ms. P 696. १४०. श्रीपाल चरित्र Opening प्रथमहि लीज ऊँकार । जो भवदु ख विनाशन हार ॥ सिद्धि चक्रविध केवल रिद्ध । गुण अनत जाको फल सिद्ध ।। Closing ता सुत कुल मडन परमध्य । वर्म आगरे मे अरि सघ ।। ता सुत बुद्धि हीन नहि आन । तिन कियौ चौपई बध वखान।। Colophon नहीं है। १४१. श्रीपाल चरित्र Opening . जय श्री धर्मनाथ सुखगेह, कंचन वरनविराजति देह । जय श्री सति पयासहु साति, दुखहरन मूरति सोभति ।। Closing अरू जो नरनारी व्रतकरे, चहुँ गति को भ्रम सब हरे । भव्यनि को उपहास वताइ, निहिच सोउ मुकति हि जाद।। ॥२४००॥ इति श्रीपालचरित्रे महापुराण भव्यसगमगलकरने बुधजन मनरजने पातिगजने सिद्धचक्रविधिदुखहरने त्रिभुवनसुखकरने भवजलतरने चौपही वध परिमल्ल कृत श्री जिनवर वद्यौ महि आनदी मिद्धचक्र वसुसारलीय जुवती नवरग पुरजनमगम गहेसुर निजगेह गय । एक दगमो सधि ॥११॥ Colophon लिखत जवाहरब्राह्मणगढ गोपात्र (ल) मध्ये मिति आपाढ कृष्ण ११ दैत्यवारे शुम सवत् १८६१ ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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