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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apa bhramsha & Hindi Manuscripts ( Purāna Carta, Kathā ) Colophon: इति श्री होनहार तीर्थङ्कर पुराणे भट्टारक श्री विजयकीति विरचिते जबूस्वामी अरहदास श्रेष्ठि अजिका मुनिदीक्षाविधानवर्णन नाम द्वात्रिसोऽधिकार । मवत् १९२६ शाके १७६४ समय भाद्रपदे मासे कृष्णपक्षे एकादश्या गुरुवासरे इद पुस्तक लिखित रामसहाय शर्मण सा वावपाली प्र० आरे। १३८. श्रेणिकचरित्र Closing Opening : श्री सिद्धचक्र विधि केवल रिद्धि । गुण अनत फल जाको सिद्ध । प्रणमौ परम सिद्ध गुरु सोइ । भव्य सग ज्यो मगल होइ॥ जीवदया पाले दुखहर, अशुचि वोल कबहु न उच्चरै। आप आपने चित सब सुखी, कम जोग शक्ति नर दुखा ।। तहा कया यह पूरण करै ॥ Colophon: इति श्रीपालचरित्रे महापुराणे भव्यसगमगलकरण वुधजनम नरजन पातिगगजन सिद्धिचत्रविधि दुखहरण त्रिभुवनसुखकारण भव्यजलतारण सम्पूर्णम् । श्री निखित ब्राह्मण प० चन्द्रावड महागष्ट ज्ञानी ब्रह्मा हरिप्रसाद । सवत् १८६५ मिति चैत्र सुदी ७ रविवार । शुभ भूयात् । १३६. श्रेणिक चरित्र ( ६ अधिकार ) Opening : Closing : नत्वा श्रीमज्जिनाधीश सुराधीशाचिनत्रामम् । श्रीपालचरित वक्ष्ये मिद्धचत्राचंनोत्तमम् ।। जीयादा महेन्द्रदत्त सुयती मजानवन्निर्मल । सूरि श्रीयुतनागरादियतिना सेवापर मन्मति ॥ ख्याते मालवदेशस्ये पूर्णानगरे करें। श्रीमदादीजिनागारे सिद्ध शास्त्रमिद शुभम् ।। नवत् सादनम्न च पाति समुन। भासाटेप पचम्या उपूर्ण रविगन ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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