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________________ Catalogue of Sanokrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Purana, Carla, Kalha ) Colophon: शुभ भूयात् । इति सम्पूर्णम् । यह पुस्तक सवत् १९५१ मिति वैशाख कृष्ण परिवा को शीतलप्रसाद के पुत्र विमलदास ने चढाया । ११३ ऋषभपुराण Opening : श्रीमत त्रिजगन्नायमादितीर्यकर परम् । फगीनेन्द्रनरिंद्राय॑ वदेऽनतगुणार्णवम् ।। Closing : अस्टाविंशाधिकाभि षट् चत्वारिंशत्शतप्रमा । अस्यादहश्चरित्रम्य स्यु श्लोका पिडितावुध ॥ Colophon : इति श्री वृषभनाथ चरित्रे भट्टारक श्री सकलकीति विरचिते वृषभनाथ निर्वाणगमनोनाम विंशतितम सर्ग । द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ० ५७ । ११४ सम्यक्त्वकौमुदी Opening . परमपुरुष आनन्दमय चेतन रूप सुजान । नमो शुद्धपरमातमा, जग परकामक भान ।। Closing ! सम्यकदर्शन मूलहै, ग्यान पेढ द्रुम डार । चरण सुपरलव पहुप है, देहि मोषि फलसार ।। Colophon: इति श्री सभ्यक्त्व कौमुदी कथा भाषा जोधराज गोदीका विरचिते उदितोदयभूप अरहदाससेठादिक स्वर्गगमन कथन सधि ग्यारमी सपूर्णम् । अठारास सोलहतरा, चैतमास है सार । शुक्लप्रतिपदा है सही, गुरुवार पैसार ॥१॥ लिपि कीन्ही भेलीराम जू, ग्याति सावडा जानि । वासी चपावति सही, वोरिगढ मधि आनि ॥२॥ जयचद जी सौ वीनती, करौ जुमनवचकाय । राति दिवस पढिज्यो सदा, इह कया मनलाय ॥३॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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