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________________ २८ श्री गंन विकास भवन कन्यागती Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bharan, Arrah Opening: Closing : Colophon : Opening: Closing : विशेष Opening : Closing : Colophon⚫ (५) नं० प्र० प्र० म० ५० १५७ (6) Cntg of Skt. & pkt. Ms. P. 661. ७०. नेमिपुराण नमामि विराधीन केषनागरे । यदेवाजिन १० ६६॥ देखें- १० ६६ । · तनो ग्रीन गी परद्रव्यापहारेण गमारे मगरतम् । तस्मात् ततो नित्यम्योग स्वयत्यागो दुई भव्यं पाननीय सुप्रद ॥ हस्तलिपि मे विभिनता है। ७२. नेमिपुराण नेमिचद जिनगज के चरण कमल युगध्याय । भापू नेमपुराण की भाषा सुगम चनाय ॥ मगन श्री अरहत मिद्ध माधु जिनधर्म पुन । ये ही लोक मद्दत परम सरण जगजीव रो ॥ Opening: भानामुदकम् ॥ १२ ॥ श्री मिजिन भट्टारक श्री विभूषण farयाचार्य श्री मिन नामानि वचनेनियन विरचिते श्री नेनितीमा व्यापी नाम पद्मनाम नयमवनदेव कृष्णनाम नवम-नागया जगमध प्रतिनारायणनावनो नाम पोटशोधिकार गमारा. । ७१. नेमिपुराण अ भट्टारक श्री मल्लिभूषण के शिष्य आचार्य श्री सिंहनन्दि के नामकरि चिन्हित ब्रह्मनेमिदत्त करि विरचित जो तीनभुवन का चूडामणि समान नेमिजिन ताके पुराण की भाषा वचनिका सपूर्ण । मिती वैशाख वदी १२ सवत् १९६२ मु० चदैरी मध्ये शुभ भवत् । नेमिनाथरिस्ता ७३. छोडे छोडे छोडे ससार नेहे तपको जोडे । सब तात मात वात वीचारी । परिवार सर्व राजूल नारी ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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