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श्री गंन विकास भवन कन्यागती
Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bharan, Arrah
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विशेष
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(५) नं० प्र० प्र० म० ५० १५७
(6) Cntg of Skt. & pkt. Ms. P. 661. ७०. नेमिपुराण
नमामि विराधीन केषनागरे । यदेवाजिन
१० ६६॥
देखें- १० ६६ ।
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तनो ग्रीन गी परद्रव्यापहारेण गमारे मगरतम् । तस्मात् ततो नित्यम्योग स्वयत्यागो दुई भव्यं पाननीय सुप्रद ॥ हस्तलिपि मे विभिनता है।
७२. नेमिपुराण
नेमिचद जिनगज के चरण कमल युगध्याय ।
भापू नेमपुराण की भाषा सुगम चनाय ॥ मगन श्री अरहत मिद्ध माधु जिनधर्म पुन । ये ही लोक मद्दत परम सरण जगजीव रो ॥
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भानामुदकम् ॥ १२ ॥
श्री मिजिन भट्टारक श्री विभूषण farयाचार्य श्री मिन नामानि वचनेनियन विरचिते श्री नेनितीमा व्यापी नाम पद्मनाम नयमवनदेव कृष्णनाम नवम-नागया जगमध प्रतिनारायणनावनो नाम पोटशोधिकार गमारा. ।
७१. नेमिपुराण
अ भट्टारक श्री मल्लिभूषण के शिष्य आचार्य श्री सिंहनन्दि के नामकरि चिन्हित ब्रह्मनेमिदत्त करि विरचित जो तीनभुवन का चूडामणि समान नेमिजिन ताके पुराण की भाषा वचनिका सपूर्ण । मिती वैशाख वदी १२ सवत् १९६२ मु० चदैरी मध्ये शुभ भवत् । नेमिनाथरिस्ता
७३.
छोडे
छोडे
छोडे ससार नेहे तपको जोडे । सब तात मात वात वीचारी ।
परिवार सर्व राजूल नारी ॥