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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shre Devakumar Jarn Ortentul L brary, Jain oeddhant Bhuvan, Arrak
अनेक विद्यानिधान भट्टारक श्री हेमचददेवा तत्प? अनेकविद्या हरीतरगु भट्टारक श्री पद्मनदिदेवा ।।।
शुक्रवार वदी ८ स. १९६६ वीर स० २४६५ ॥ ई० १९३६ को समाप्त हुआ। लेखक राजधरलाल जैन ॥
द्रष्टव्य-जि० २० को०, पृ० ३१५.
६५. नन्दीश्वर व्रत कथा Opening :
प्रणम्य परमानद जगदानददायकम् ।।
सिद्धचक कथा वक्ष्ये भव्याना शुभहेतवे ।। १ ।। Closing : श्रीपद्मनदीमुनिराजपट्टे शुभोपदेशीशुभचन्द्रदेव ।
श्री सिद्धचत्रस्य कथावतारं चकार भव्यावुजभानुमाली । सम्यग्दृष्टिविशुद्धात्मा जिनधर्मे च वत्सल ॥
जालात कारयामास कथा कल्याणकारिणी ॥ Colophon : इति नदीवर अष्टान्हिका कथा समाप्ताः ।।
द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ. २००, ४३६
६६. नेमिचन्द्रिका Opening
आदि चरन हिरदै धरौ, अजित चरन चितलाय । सभवसुरत लगायक, अभिनदन मनलाय ॥ मारग जाने मोक्ष को, जिनवर भक्त सुवास ।
कहू अधिक कहू हीन है, सो सब लीजे सोर ॥ Colophon: इति श्री नेमिवन्द्रिका सपूर्णम् । मिती जेष्ठंवदी ७ सवत्
१९६२। लिखित प. चौवे छुटीलालकी।
६७. नेमिनाथचन्द्रिका Opening. प्रयम नमो जिनचद्रपद नमत होत आनद ।
.शिवसुखदायक सकल हित, करत जगत जगफद ।। Closing: • एक सहस अरु अठशतक, वरष असिति और ।
याही सवत मो करी, पूरन इह गुणगौर ।। Colophon इति श्री नेमनाथ जीकी चन्द्रिका मुन्नालालकृत सम्पूर्णम् ।
सवत् १८९५ मासोत्तमे मासे माघेमासे कृष्णपक्षे त्रयोदण्या द्रवासरे
Closing :