SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shre Devakumar Jarn Ortentul L brary, Jain oeddhant Bhuvan, Arrak अनेक विद्यानिधान भट्टारक श्री हेमचददेवा तत्प? अनेकविद्या हरीतरगु भट्टारक श्री पद्मनदिदेवा ।।। शुक्रवार वदी ८ स. १९६६ वीर स० २४६५ ॥ ई० १९३६ को समाप्त हुआ। लेखक राजधरलाल जैन ॥ द्रष्टव्य-जि० २० को०, पृ० ३१५. ६५. नन्दीश्वर व्रत कथा Opening : प्रणम्य परमानद जगदानददायकम् ।। सिद्धचक कथा वक्ष्ये भव्याना शुभहेतवे ।। १ ।। Closing : श्रीपद्मनदीमुनिराजपट्टे शुभोपदेशीशुभचन्द्रदेव । श्री सिद्धचत्रस्य कथावतारं चकार भव्यावुजभानुमाली । सम्यग्दृष्टिविशुद्धात्मा जिनधर्मे च वत्सल ॥ जालात कारयामास कथा कल्याणकारिणी ॥ Colophon : इति नदीवर अष्टान्हिका कथा समाप्ताः ।। द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ. २००, ४३६ ६६. नेमिचन्द्रिका Opening आदि चरन हिरदै धरौ, अजित चरन चितलाय । सभवसुरत लगायक, अभिनदन मनलाय ॥ मारग जाने मोक्ष को, जिनवर भक्त सुवास । कहू अधिक कहू हीन है, सो सब लीजे सोर ॥ Colophon: इति श्री नेमिवन्द्रिका सपूर्णम् । मिती जेष्ठंवदी ७ सवत् १९६२। लिखित प. चौवे छुटीलालकी। ६७. नेमिनाथचन्द्रिका Opening. प्रयम नमो जिनचद्रपद नमत होत आनद । .शिवसुखदायक सकल हित, करत जगत जगफद ।। Closing: • एक सहस अरु अठशतक, वरष असिति और । याही सवत मो करी, पूरन इह गुणगौर ।। Colophon इति श्री नेमनाथ जीकी चन्द्रिका मुन्नालालकृत सम्पूर्णम् । सवत् १८९५ मासोत्तमे मासे माघेमासे कृष्णपक्षे त्रयोदण्या द्रवासरे Closing :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy