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________________ २३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, ^pabhramsha & Hindi Manuscripts (Purana, Carta, Katha ) .. Closing : सवत् अष्टादश शत जान। अधिक और पैतीस प्रमान । कातिक सुदि नौमी गुरुवार । ग्रन्थ समापित की नौ सार॥ Colophon • इति श्री जीवधर चरित्र आचार्य श्री शुभचन्द्रप्रणीतानु सारेण नथमल विलालाकृत भाषाया जीवधरमुनिमोक्षगमन वर्णनो नाम त्रयोदशसर्ग. सम्पूर्णम् । इति जीवन्धर चरित्र सम्पूर्णम् । मिती फूस (पौष) सुदी ४ सवत् १९६१ मुक्काम चद्रापुरी। ५६. कथावली Opening : श्री शारदास्पदीभूत-पादद्वितयपकजम् । नत्वाहत प्रवक्ष्यामि व्रत मुकुटसप्तमी ।। Closing... : मुनिराहे निभोष्ठि ___ द्रष्टव्य -जि. र० को०, पृ० ६६ । ६०. कुदेव चरित्र Opening : सो हे भव्य तू सुणि। सो देखी जगत विष भी यह न्याय है। Closing • तो एक सर्वज्ञ वीतराग जो जिनेश्वर देवता का वचन अगीकारकरि अर ताका वचनाकअनुसारि देवगुरु धर्म का श्रद्धानकरि । Colopnon · इति कुदेव चारित्र' वर्णन सम्पूर्णम् । मिति कार्तिक सुदी २ सन् १२७६ साल दस बत दुरगाप्रसाद जंनी आरा मध्ये लिखा, जो देखा सो लिखा। भूलचूक देखके, बुधजन लियो ‘सुधार । हमे दोष मत दीजियो, क्षमा करो जर ज्ञान ।। Cicninzi ६१/१ मदनपराजय यदमलपदपद्म श्री जिनेशस्य नित्यम्, शतमखशतमेव्य पद्मग दिवद्यम् । दुरितवनकुठार ध्वस्तमोहाधकार, सदखिलसुखहेतु त्रि. प्रकारैर्नमामि ॥१॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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